मंगलवार, 30 जुलाई 2013

हे बेटियों के पिता

हे बेटियों के पिता

बेटियों की किल्कारियों से है आंगन हरा भरा,
इनकी नन्ही शरारतों पर सबका मन रीझ रहा,
इनके इरादों के आगे हर अवरोध हारेगा,
मुश्किलें छोड़ कर राह करेंगी किनारा।

इनके हाथों मे जब जब किताबें होगीं,
ये आगे बढ कर कल्पना चावला बनेगीं,
इनके हाथों मे जब होगा टेनिस रैकेट,
बनेगीं सानिया मिर्ज़ा पार कर हर संकट।

इन्हे एक मौका देने मे ही है बस देर हुई,
कोई नहीं रोक सकता बनने से इन्द्रा नूई,
जिन्हे वोट देने का कभी अधिकार भी न था,
उन्होने आज लहरा दिया है हर क्षेत्र में झंडा।

वो दर्जी की बेटी देखो पुलिस अफ़सर हो गयी,
दूधवाले की बेटी कर रही है पी एच डी,
ठाकुर की बेटी भी तो करने जा रही एम बी ए,
इनके पांव को न बांध सक रही घर की दहलीज।

हे पिता इनको सहेजना जब पड़े मुश्किल घड़ी,
न डिगना कर्तव्य से याद कर उनकी कोई गलती,
कुछ भूल हो जाये तो भी मत छोडना इनका हाथ,
ये पत्थर नही इनमे भी है मज्जा और रक्त की धार।

बेड़ियां जो इज्ज़त के नाम से है इनके पांव में पड़ी,
पिता हो काट सकते हो यदि तुम करो हिम्मत थोड़ी,
बहुत बांध कर रख लिया इन्हे रिवाजों के बन्धन में,
दो मुक्ति अब ये भी उड़ें पंख पसार कर गगन में।

(this poem is not written by me )


सोमवार, 22 जुलाई 2013

लिव इन

पिछले दिनों चेन्नई रेलवे स्टेशन पर,रात के वक़्त  २-३ घंटे अपनी ट्रेन के इन्तेजार में बैठना पड़ा.वहां प्लेटफार्म पर  बहुत सी कुर्सियां लगी हुई हैं,जहाँ बैठ मैं अपना समय इधर उधर देखने में व्यतीत कर रही थी.तभी पास ही नीचे जमीन पर एक बुड्डी औरत बड़ी सी प्लास्टिक कुछ चीथड़े से कपडे वैगरह ले कर आई,उन्हें जमीन पर बिछा कर सोने का उपक्रम करने लगी.उसकी उम्र ८० से कम न होगी,वक़्त की मार चेहरे पर साफ़ झलक रहा था,पर कुछ तेज सा भी विद्यमान था,जो बरबस ध्यान खीच ले रहा था.अपने साजो सामान बिछा वह लेट गयी वहीँ.तभी एक और बहुत बुड्डे  सा   व्यक्ति जो उसी की तरह फटे पुराने कपड़ों में था लाठी टेकता आया,उसकी बगल में अपनी जगह बनाई और बैठ गया.दोनों आपस कुछ बतिया रहें थे.बुड्डे ने अपने झोले से कोई मलहम निकला और उसे बुदिया के तलवों में मलने लगा,अब मेरा भी ध्यान गया उसकी पैरों की तरफ गया शायद   कोई ग़हरा जख्म   था.
           पास ही  के कुर्सियों पर कालेज के कुछ लड़के-लड़कियों का ग्रुप बैठा था.वे लोग भी उन दोनों को ही देख रहे थे,कुछ हँसते हुए बतिया भी रहे थे.तभी एक ने जोर से कहा अरे ये देखो  बुड्डे-बुड्डी लिव इन रिलेशन में हैं........हे हे .......खुले आम इश्क फरमा रहें हैं.  सब जोरो से हंस पड़े.
         अचानक जो हुआ उसकी कल्पना न थी,बुड्डी महिला ब मुश्किल उठी,लंगड़ाते हुए उनके पास खड़ी  हुई और धाराप्रवाह अंग्रेजी में बोलने   लगी.सार यही था की.....
         यदि हम आज बुड्डे हैं तो कल तुम लोग भी होगे.यहीं पास के ओल्ड ऐज होम में हम रहते हैं,जहाँ आज अत्यधिक बरसात से पानी भर गया है,सो रात गुजरने प्लेटफार्म पर आ गए.बेटा मुझे पिछले ४ साल से मिलने नहीं आया है,मैं नहीं जानती वह ठीक भी है या नहीं.ये मेरा कुछ भी नहीं लगता पर हम सब यहाँ एक दुसरे का सहारा बने हुए  हैं.उम्र के इस चौथे पन में सारे रिश्ते  अपनी औकात पर आ गएँ है.हम आज बुड्डे और लाचार हो गएँ हैं तो  इसका ये मतलब नहीं की हमारा मजाक बनाया जाये................
   फिर दोनों ने धीरे अपना साजो-सामान समेटा और वहां से हट प्लेटफार्म के दुसरे छोर पर जा कर बैठ गए.कुर्सियों पर बैठे हुए सभी लोग जो अभी तक नज़ारे का मज़ा ले रहे थे, इधर-उधर देख झेप मिटाने लगे.

बुधवार, 10 जुलाई 2013

उतार- .चढ़ाव .....

सचमुच जीवन बहुत कठिन है.
बहुत कठिन है बहुत कठिन है.
याद नहीं सुख कब आया था
सुख भरे दिन हो गए स्वप्निल
सुख का सारा जीवन बीता....
दुःख ने छीन लिया  हर वो  पल
बिखर गया है सारा जीवन...
 पल पल दुखमय कण कण.
दौड़ रहें हैं भाग रहें है..
दिशाहीन हो भटक रहें हैं.
सचमुच जीवन बहुत कठिन है.
बहुत कठिन है बहुत कठिन है.

प्यार भरा था सारे रिश्ते
अपनापन में रिश्ते  नाते
मन जीवन सब महक रहा था
प्रेम सुगंधी से दिल चहक रहा था.
रोग बीमारी दूर पड़ी थी.
कदम  सफलता चूम रही थी.
कार्य क्षेत्र भी बड़ा सरस था.
बिगड़े काम सवंर ही जाते.
दुःख-विपत्ति टलते जाते.
ऐसा जीवन बीत गया सब.
स्वप्न लोक सा मेरा जीवन
कहाँ गया आलोकित वो मन.

अब तो  जीवन बहुत कठिन है.
बहुत कठिन है बहुत कठिन है.
खट्टे हो गए रिश्ते नाते......
अपने को अब हम न भाते.
उनकी ही तो हाय ! पड़ी है..
रूठ रूठ कर लड़ी पड़ी है..
नए जगह में नए लोग हैं
कार्य क्षेत्र में पूछ नहीं है
अपना कोई हीत नहीं है
हीत नहीं है मीत नहीं है.
सूनापन है खालीपन है.
बेचारगी आवारापन है.
रोग-बीमारी अक्सर  रहते
थक गए अब सहते सहते.
बनता काम बिगड़ ही जाता
सफल सफलता दूर है जाता.
यूं ही जीवन बीत रही है...
सुखमय जीवन रीत रही  है.


सचमुच जीवन बहुत कठिन है.
बहुत कठिन है बहुत कठिन है.
गलती हो तो माफ़ करो जी... 
जीवन दिल को साफ़ करो भी.
टूटे रिश्ते फिर से जोड़ो.....
जोड़ो ऐसा पक्का नाता
प्यारभरा जीवन पथ गाथा.
सुफल  सफलता घर भी आओ
हम को अब तुम छोड़ न जाओ.
सुख मेरे तुम वापस आओ.
दुख  को सारे तुम दूर भागो.
प्रेम मुहब्बत बसने आओ
रोग बीमारी जल्दी भागो.
किस्मत जीवन सरस बना दो
सुखद बना दो सफल बना दो.








  

बुधवार, 3 जुलाई 2013

ऊब

ऊब 

तुम  रूठे रहते हो,मैं मनाती  रहती हूँ.
मैं मनाती हूँ,तुम फिर रूठ जाते हो.
बार बार रूठने की आदत अब छोड़ दो.
रिश्तो को ख़ूबसूरत अंजाम पर मोड़ दो.
....कहीं ऐसी कभी कोई बात हो जायेगी
मुझे तुम्हारे रूठने की आदत हो जायेगी.
नाराजगी  झेलने की ताकत आ जाएगी.
तुम रूठे रूठे इन्तेजार करते रह जाओगे,
 रूठा -रूठी से ऊब मैं कहीं और बढ जाउंगी.