गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

पाती प्रेम की

प्यार के दिवस ,वैलेंटाइन डे , पर " एक प्रेम कहानी "

पाती प्रेम की 

बाबू जी माँ की पार्थिव शरीर के पास बैठे एक टक देखे जा रहें थे ,हम चारों बहने माँ की अंतिम विदाई कि तैयारी में लगे थे। मैंने बाबूजी को देखा झुकी कमर धुन्धली आँखों से अविचल भाव से स्थितिपरक हो वीतराग भाव में अन्मयस्क से लगे। रिश्ते की बड़ी बूढ़ी जैसा बता रहीं थीं हम किये जा रहें थे। किसी ने तभी कहा कि सुहागन गयीं है मांगटीका और नथ पहना दो ,हम माँ की अलमारी में खोजने लगे। मिल नहीं रही थी तभी कुछ कपड़ो के तह के नीचे एक लाल मखमल की ब्लाउज जिस पर सुनहरी किनारी थी ,मुझे दिखी। ये तो माँ की शादी का है सोचते हुए मैंने खीच दिया …… अरे ये क्या इसमें से ये क्या गिरने लगा ?कुछ तुड़ी मुड़ी कुछ पीली पड़ी हुई कुछ लिफाफे कुछ अंतर्देशीय शक्ल में प्यार याद, स्नेह ,विरह ,रूठना -मानना शिकवा शिकायत के हरश्रृंगार झड़ने लगे। ह्रदय की कोटर में
,उम्र और ज़माने से यतन से छिपा कर रखी हुई चिट्टियां थीं। उठाने क्रम में देखा लिखा था "फूल तुम्हे भेजा है ख़त में ………" बाबू जी की लिखावट थी। तभी देखा बाबूजी खरगोश सी तेजी ये यादों के सारे फूलो को चुननेलगे ,हमसे कोई मदद करने बढ़ा तो मना कर दिया।
हम माँ को सजाने लगे और बाबूजी पत्र की पोटली पकडे फफक कर रो पड़े।



लघु चित्र कथा - लव लेटर्स 

बंगले के लॉन में गुनगुनी धूप में अब जा कर रश्मि थोड़ा पीठ सीधा कर पायी थी। पिछले कुछ दिनों से घर में जो भूचाल आया हुआ था उसकी आँखों के आगे घूम गए। कॉलेज के अंतिम साल में पढ़ने वाली बेटी,प्रीती का अपनी कक्षा में पढ़ने वाले अमित के साथ कुछ विशेष दोस्ती की खबर उसकी सहेली ने दी थी। रश्मि के पति ने तो मानो अपना आपा ही खो दिया,प्रीती रोती रही,रोती रही,पर उसका पक्ष ही कमजोर था। अमित अति साधारण घर का एक बेरोजगार युवक था,भला एक उच्च पदासीन अफसर की अतिरूपवती -गुणवती कन्या से उसका मेल कैसा ?आननफानन में अच्छे वर की तलाश होने लगी ……
बेजुबान बछिया सी प्रीती अपने पापा के साथ घिसटती हुई आज सुबह दिल्ली के लिए निकली,उनके एक मित्र का विवाह योग्य उच्च पदासीन बेटा एक हफ्ते में विदेश जा रहा था। जाते वक़्त डबडबाती आँखों से प्रीती ने कहा किअमित के पास मेरी कुछ चिठ्ठियां हैं,मैंने खबर भिजवा दिया है वह आ कर दे जायेगा। 
थोड़ी देर में अमित मेरे सामने सर झुकाये बैठा था और चिट्ठियों का पुलिंदा मेरी गोद में। उफ़ !बच्चे से निगाह नहीं हट रही थी,चेहरे से टपकती तेज और नूर ने आँखे चुन्धियाँ दी थी। कुछ देर आंसू बहाता बैठा रहा फिर चला गया। मैं पत्रों को उलटने पलटने लगी ,एक जगह प्रीती ने लिखा था ,"अरे तुम डरते क्यूँ हो ,तुम तो टॉपर हो तुम्हे तो अच्छी नौकरी मिलेगी ही। मुझे पूरा विश्वास है कि मम्मी एक बार मेरे चाँद का मुखड़ा देख लेगी तो वो कभी हमारे रिश्ते के लिए मना नहीं करेंगी ". मैं धम्म से नीचे बैठ गयी कि कहीं कुछ गलत तो नहीं हो रहा,सारी चिट्ठियां बिखर गयी किरिच किरिच कर और तभी याद आया उनकी हिदायत जला डालना लेटर्स इसीलिए तुम्हे छोड़े जा रहा हूँ यदि उसने ब्लैकमैलिंग की तो उसे जिन्दा नहीं छोड़ूंगा , मैं सगाई करवाकर ही लौटूंगा .....







एक श्रद्धांजलि ख़त को 

पिछले हफ्ते हमने पत्रों पर ढेरों कहानियां पढ़ी। एक से एक अनुभव। आज संचार के एक से एक साधन मौजूद है जिसने अपनों से ही नहीं आप जैसे अपरिचितों से भी जोड़ दिया है। 
आज से कुछ साल पहले तक जब टेलीफोन बहुत प्रचलित नहीं थे। दूसरे शहर या देश में रहने वालें अपने हीत -मीत के हालचाल जानने का सबसे उत्तम साधन ख़त ही होते थे। तब वाकई अपनों से दूरी   खलती थी। हम नानी के घर से चलते तो नानी बोलतीं पहुँच कर एक पोस्टकार्ड डाल देना कि सकुशल पहुँच गए ,हम अपने शहर पहुँचते आज कल कर एक पोस्ट कार्ड लिखा जाता कि हम पहुँच गए फिर कोई एकाध दिनों में डाकघर जाता तो पोस्ट होता। कोई दस बारह दिनों के बाद नानी जान पाती कि हम सकुशल या परेशानी से पहुँच गएँ हैं। डाकिये का बेसब्री से इन्तेजार होता था। फिल्मे बनती जिसमे नायिका डाकिये और ख़त के इन्तेजार में विरह गीत गाती। बेटा हॉस्टल में पहली बार जाता तो माँ बाप के पत्र सीने लगा कर "फील एट होम" करता। उस वक़्त का सर्वोत्तम तेज संचार का साधन तार ही होता था,जो ज्यादातर दाहसंस्कार के बाद खबर पहुंचता था कि दादा जी गुजर गए। बाप को बेटा होने की खबर उसके छठी के बाद मिलती। कोई विदेश चला गया तो घर वाले उसके हाल- समाचार को तरसते ही रहते क्यूँ कि वहाँ से और देर से खबर पहुँचती थी। इसीलिए तो बेटियां विदाई के वक़्त ऐसा रोती मानों यमदूत प्राण लिए जा रहें हो। काहे को ब्याही बिदेश सा भाव भरा रहता। बेटी ससुराल से पत्र लिखती तो वह पूरा सेंसर हो कर ही डाकखाने पहुँचती। भाई विदाई के वक़्त गुप्त संकेतों से बहन को समझाता कि यदि सुख में रहो तो कलम से पत्र लिखना और कोई तकलीफ हो तो पेंसिल से लिखना मैं समझ जाऊँगा कि तुम दुःख में हो। ऐसी मार्मिक कहानियां लिखी जाती कि जब पेंसिल से चिट्ठी लिखी गयी दुल्हनिया का भाई पहुँच गया और पेंसिल जप्त हो गयी ,बहन पेन से अपने को सुखी साबित करती कष्ट झेलती दम तोड़ गयी।
सिलसिला लम्बा है ख़त अनंत उसकी कथा अनन्त।


Rita Gupta