रविवार, 26 अक्तूबर 2014

कुछ मनोरंजक तथ्य जीवन के -

कुछ मनोरंजक तथ्य जीवन के -
पिज़्ज़ा हमेशा हमें चकित कर देती है। ये चौकोर डिब्बे में आती है ,जब इसे खोलते हैं तो ये गोल होता है और जब खाना शुरू करते हैं तो ये त्रिकोण होता है। 
 जिंदगी और लोग पिज़्ज़ा की तरह दिखते कुछ और हैं ,वस्तुतः कुछ और होतें हैं और व्यवहार उनका कुछ और ही होता है। 

अच्छा वक़त और बुरा वक़्त एक सोच है। रेलवे स्टेशन की भीड़ में हमारा दम घुटता है वहीँ डिस्को की भीड़ मन खुश कर देती है। 

अस्पताल की दीवारो ने अधिक प्रार्थनाएं और दुआ के स्वर सुने होंगे ,एक मंदिर या मस्जिद की तुलना में। 



अक्सर जिंदगी में हम बड़ी बड़ी उपलब्धियां हासिल नहीं कर पाते हैं जैसे
बड़े पुरस्कार
नोबेल
ऑस्कर
ग्रैमी
डिग्रीयां
बेस्ट जॉब
पहला रैंक
सर्वोत्तम कॉलेज से शिक्षा

पर हम सब हमेशा जिंदगी की छोटी छोटी उपलब्धियों के योग्य हमेशा होते हैं
बेस्ट फ्रेंड से गलबहियां
माँ की गोद में नींद
एक ख़ूबसूरत सूर्यास्त
बरसात में भींगना (रेन डांस)
एक सुहानी सी शाम अपने टेरेस पर
पुराने कोट की जेब में अचानक रूपये निकल आना
सुकून की नींद





बड़ी मुश्किल से बना हूँ टूट जाने के बाद,
मैं आज भी रो देता हूँ मुस्कुराने के बाद,
तुझ से मोहब्बत थी मुझे बेइन्तहा लेकिन,
अक्सर ये महसूस हुआ तेरे जाने के बाद। ...


वो नजर कंहा से लाऊँ जो तुम्हें भुला दे,
वो दवा कंहा से लाऊँ जो ईस ददॅ को मिटा दे,
मिलना तो लिखा रहेता है तकदिरो में,
पर वो तकदिर कंहा से लाऊँ जो हम दोंनो को मिला दे.. ...

कभी हंसते हो कभी तुम रूठ जाते हो,
तुम इन अदाओं से मेरा दिल चुराते हो,
बुझ गई हूं मैं बंधनों में रहते-रहते,
एक तुम ही तो हो जो मुझको जलाते हो,
एक जवां प्यास मिली है तुमको पाकर,
ख्वाब का दरिया सहरा में बहाते हो,
बारहा तेरे ही पास मैं चली आती हूं,
अपने सितमों से ऐसा असर छोड़ जाते हो.. 

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बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

जब चाँद का धीरज छूट गया । वह रघुनन्दन से रूठ गया ।

चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपवली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं सकता। यह एक मधुर कविता है कि चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते हैं आइये देखते हैं ।
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जब चाँद का धीरज छूट गया ।
वह रघुनन्दन से रूठ गया ।
बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है ।
स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है ।
तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है ।
हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है ।
सीता के रूप को हम ही ने सँभारा है ।
चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है ।
जिस वक़्त याद में सीता की ,
तुम चुपके - चुपके रोते थे ।
उस वक़्त तुम्हारे संग में बस ,
हम ही जागते होते थे ।
संजीवनी लाऊंगा ,
लखन को बचाऊंगा ,.
हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त
मगर अपनी चांदनी बिखरा कर,
मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त ।
तुमने हनुमान को गले से लगाया ।
मगर हमारा कहीं नाम भी न आया ।
रावण की मृत्यु से मैं भी प्रसन्न था ।
तुम्हारी विजय से प्रफुल्लित मन था ।
मैंने भी आकाश से था पृथ्वी पर झाँका ।
गगन के सितारों को करीने से टांका ।
सभी ने तुम्हारा विजयोत्सव मनाया।
सारे नगर को दुल्हन सा सजाया ।
इस अवसर पर तुमने सभी को बुलाया ।
बताओ मुझे फिर क्यों तुमने भुलाया ।
क्यों तुमने अपना विजयोत्सव
अमावस्या की रात को मनाया ?
अगर तुम अपना उत्सव किसी और दिन मानते ।
आधे अधूरे ही सही हम भी शामिल हो जाते ।
मुझे सताते हैं , चिड़ाते हैं लोग ।
आज भी दिवाली अमावस में ही मनाते हैं लोग ।
तो राम ने कहा, क्यों व्यर्थ में घबराता है ?
जो कुछ खोता है वही तो पाता है ।
जा तुझे अब लोग न सतायेंगे ।
आज से सब तेरा मान ही बढाएंगे ।
जो मुझे राम कहते थे वही ,
आज से रामचंद्र कह कर बुलायेंगे

रविवार, 12 अक्तूबर 2014

इस दीपावली कुछ नया करें

इस दीपावली कुछ नया करें 1

 खुशियों और रौशनी का पर्व दिवाली अब महज कुछ दिन ही रह गया हैं। आइये इस वर्ष कुछ जुदा कुछ अलग ढंग से इसे मनाएं। उसकी तैयारी आज से ही शुरू करें। गुप्त दान का बड़ा महत्व है। कहतें हैं दान का सौ गुना हमे वापस मिल जाता है किसी न किसी रूप में । आज ही एक मिटटी का गुल्लक या कोई बंद डिब्बा ले। शाम को घर लौटने पर जो रेजगारी और छोटे नोट आपके बटुए में बच रहें हो उन्हें इसमें डाल दें। दिवाली के दिन इसे बिना खोले ,बिना गिने किसी अनजान जरूरतमंद गरीब को इसे दे दें। यकीन मानिये उस गरीब की चेहरे की चमक के आगे आपके चीनी बल्ब की रौशनी फीकी पड़ जायेगी। मैंने  अपनी सहेली उपासना से दिवाली के पहले ये गुप्त दान करना सीखा है आपभी इस बात का प्रसार करें और इस दीपावली हर गरीब के चेहरे पर खुशियों का दीप प्रज्ज्वलित करें। 

इस दिवाली कुछ नया करें 

भारत और इंडिया की दूरी बढ़ते जा रही है। हैं तो दोनों एक ही देश के वासी पर रहन सहन ,सोच विचार के स्तर पर फर्क बढ़ती जा रही है। सो इस नए चमचमाते इंडिया के सुखी सम्पन्न लोगो से अपील है कि इस दिवाली कुछ ऐसा करें कि अपने ही देश के अल्पसुविधा प्राप्त लोगो के जीवन भी रोशन हो जाएँ। ये चमचमाते सुविधावंचित चेहरे ही हमारे दिवाली को और रोशन कर देंगे। यदि आपके पास कुछ ऐसी राय हो जो इस दिवाली हम औरो के लिए कर सकें तो अवश्य बताएं। फिलहाल दिवाली पर पुराने रद्दी ,अखबार ,जूते,बोतल शीशी  ,कपडे किसी कबाड़ी वाले को बेचने से अच्छा होगा कि किसी गरीब कचरा बीनने वाले बालक को दे कि वह इन्हे बेच कुछ पैसे कमा ले। 



इस दिवाली कुछ नया करें 
दिवाली में घरो को साफ करने की परम्परा है। हर कोने ,हर अलमारी ,हर कमरे की सफाई होती है। अवधारणा है कि दीपावली की रात धन की देवी लक्ष्मी सिर्फ साफ़ घरों में ही जाना पसंद करती हैं। कितना ही अच्छा हो कि सिर्फ हमारा घर ही नहीं हमारे घर की आस पास की भी सफाई हो जाए। जिस बिल्डिंग में हम रहतें हों ,जिस मोहल्ले में हम रहतें हैं वह सब भी चमचमा जाये। कितना ही अच्छा हो जिस कचरे की ढेर से हो हम रोज गुजरते हैं वह साफ़ हो जाए। वह बजबजाती नालियां साफ़ हो जाए जो प्रतिदिन हमारे मार्ग में पड़तीं हैं। सरकार जितनी भी कार्यक्रम चला ले सफल वो तभी होगा जब जमीनी स्तर पर हर नागरिक सहभागी होगा। सफाई का भी यही है ,जब तक प्रत्येक व्यक्ति सफाई के प्रति जागरूक नहीं होगा ,राष्ट्र कचरा पेटी बना रहेगा। क्यों ना हम सब मोहल्ला समिति बना पहले जागरूकता का प्रसार करें फिर सफाई आंदोलन। बहुत मुश्किल या असंभव नहीं हैं। घर के छोटे बच्चे को हम यदि कूड़ेदान का प्रयोग सीखा दे ,बुजुर्गो को सम्मान पूर्वक याद दिला दे कि कचरा दान जगह पर है। कुछ चंदा कर बड़ी बड़ी कचरा पेटियां यत्र तत्र रख दे। हर मुहल्लावासी नालियों को साफ रखने के लिए तत्पर हो जाए। घरों या दुकानो से कचरा बुहार रोड पर ना फेंके। देखा जाये तो ये उस मोहल्ले के वासी ही तय कर सकते हैं कि कैसे सफाई रखी जाए। 

  बस हमारी थोड़ी सी सजगता और जागरूकता इस दिवाली गंदे रहने और गंदगी फैलाने की आदत से हमे सदा के लिए निजात दिला देगी। 




दिवाली और उपभोक्तावाद -जागो ग्राहक 
बचपन में हम सुना करते थे कि दिवाली के एक दिन पहले धनतेरस होता है उसदिन जो कुछ खरीदा जाये वह तेरह गुना हो जायेगा (?) पर कुछ वर्षों से बाज़ारवाद त्यौहार पर कुछ ज्यादा ही हावी होता जा रहा है। एक से एक लुभावने ऑफर के साथ जहां बाजार सज जाता है वहीँ अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन आने लगतें हैं उन तथाकथित शुभ मुहूर्तों का जिनमे खरीदारी करना कितना शुभ होगा। एक से एक नए नए ज्योतिषाचार्य उवाच आने लगते हैं की किन मुहूर्त में किन राशि के जातकों को क्या खरीदना चाहिए। इनदिनों खरीदारी भी छोटी मोटी चीजों की नहीं बल्कि सोना चाँदी हीरे मोती के जेवरात से घर जमीन तक की खरीदारी कितना शुभ हो सकता है इसी में अखबार रंगे रह रहें हैं। विज्ञापन भी इतने लुभावने तरीके के होतें हैं कि यदि फलां मुहूर्त में ऐसा न लिया तो बस क़यामत ही आ जाएगी।
बाजार का काम है ग्राहकों को खींचना ,इन शुभ लग्न और घडी के चक्करों से बचते हुए ही अपनी जरूरत की वस्तुएं खरीदें और त्यौहार की ख़ुशी मनाएं।