बुधवार, 12 नवंबर 2014

सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं

आज जब श्रीमान केजरी बाबू को अचानक बड़े दफ्तर से एक अति विशिष्ठ पद के लिए नियुक्ति पत्र प्राप्त हुआ तो दफ्तर में सबकी कालेजों पर सांप लोट गए। असल में उनका नाम कृष्णकांत है पर उनकी ईमानदारी और आदर्श भरी बातों के चलते लोग केजरीबाबू बोलने लगे थें जिसमे एक  विद्रूप व्यंग्य रहता था। सीमा पर शहीद होनेवाले जवानो को सबसे बड़ा देशभक्त कहा जाता है पर हर दिन इस सड़ी गली कामचोर भ्रष्ट लोगो के बीच अपनी ईमान को बिकने से बचा लेना भी कोई कम बहादुरी नहीं है। उन बेईमान गलीज लोगो की धमकियों और विभिन्न प्रकार की दबाव के समक्ष घुटने न टेकना भी बहुत बड़ी देशभक्ति है। वो सब एक हो गोलबंद हो गलत को सही करने में लगे थे ,कृष्णकांत जी अकेले जूझते  रहे पर झुके नहीं। अंत में विभाग से  तबादले के ब्रह्मास्त्र से उनके बुलंद विचारों को नेस्तनाबूद करने की कोशिश हुई। दफ्तर में सबसे किनारे कोने वाले अपने कमरे में मानों वे कोई देशनिकाला झेल रहें थे। एक कटपुतली को उनकी जगह बैठा ईमान और नियमो की बोटियाँ नोच ली गयीं। उनका हटना वर्जनाओं का धराशाही होना था,भ्रष्टाचारियों  की जश्न और हौसले मानो आसमान छेद देंगी। 
  कृष्णकांत जी ने सत्य के इस वनवास को बहुत सहजता से लिया। उन्हें ये भान था कि ऐसा कुछ होगा ही। पांडवों की तरह वनवास की अवधि को उन्होंने अपने अभ्युदय  और ज्ञान विकास में सदुपयोग किया। कोई कितनी होशियारी कर ले चोरी का भंडाफोड़ तो होता ही है। कुछ चतुर सयाने बच निकले ,कुछ छोटी मछलियां पकड़ी भी गयीं। पर ये तो बिना अपराध सजा भुगतते रहें। तीखी नजरें उन्हें ऐसा हेय दृष्टि से तकती मानों ईमानदारी की सजा तो भुगनी ही है। इस आड़े विषम वक़्त में पत्नी और बच्चों ने खूब हौसला बढ़ाये रखा आखिर उनके ही संस्कार थे। बिना किसी चाहत के बिना बोले अपने कर्मों से अपने आदर्शो को अक्षुण रखा,जिसका उन्हें चैन रहा। 
  आज जब बड़े दफ्तर से उनके लिए विशेष नियुक्ति पत्र आया तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि क्या ईमानदारी और साफ नियत को सभी अजूबा नहीं समझते हैं। विवेकानंद की बात कि सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं -पर विश्वास हो गया। 

रविवार, 2 नवंबर 2014

waah waah

"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... !
जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !!

वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... !
जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"

न मेरा 'एक' होगा, न तेरा 'लाख' होगा, ... !
न 'तारिफ' तेरी होगी, न 'मजाक' मेरा होगा ... !!

गुरुर न कर "शाह-ए-शरीर" का, ... !
मेरा भी 'खाक' होगा, तेरा भी 'खाक' होगा ... !!

जिन्दगी भर 'ब्रांडेड-ब्रांडेड' करने
वालों ... !
याद रखना 'कफ़न' का कोई ब्रांड नहीं होता ... !!

कोई रो कर 'दिल बहलाता' है ... !
और कोई हँस कर 'दर्द' छुपाता है ... !!

क्या करामात है 'कुदरत' की, ... !
'ज़िंदा इंसान' पानी में डूब जाता है और 'मुर्दा' तैर के
दिखाता है ... !!

'मौत' को देखा तो नहीं, पर शायद 'वो' बहुत
"खूबसूरत" होगी, ... !
"कम्बख़त" जो भी 'उस' से मिलता है,
"जीना छोड़ देता है" ... !!

'ग़ज़ब' की 'एकता' देखी "लोगों की ज़माने
में" ... !
'ज़िन्दों' को "गिराने में" और 'मुर्दों' को "उठाने
में" ... !!

'ज़िन्दगी' में ना ज़ाने कौनसी बात "आख़री"
होगी, ... !
ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी ।

मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से ना जाने कौनसी "मुलाक़ात" "आख़री होगी" ... !!




मैंने .. हर रोज .. जमाने को .. रंग बदलते देखा है ....
उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!

वो .. जो चलते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान..
उनको भी .. पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!

जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग ..
उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ रोते देखा है .. !!

जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से .. टूट जाते थे ..पत्थर ..
उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!

जिनकी आवाज़ से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम ..
उनके .. होठों पर भी .. जबरन .. चुप्पी का ताला .. लगा देखा है .. !!

ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब ख़ुदा की .. इनायत है ..
इनके .. रहते हुए भी .. इंसान को ~~ बेजान हुआ देखा है ... !!

अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. युवा यारों ..
वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर हुआ देखा है .. !!!

कर सको......तो किसी को खुश करो......दुःख देते ........तो हजारों को देखा है..