गुरुवार, 28 जुलाई 2016

आवारा माँ

आवारा माँ

  शीर्षक पढ़ चौंके नहीं . वाकई आज कल कई आवारा माओं को देख रहीं हूँ जो सडको पर रात-दिन आवारागर्दी  करती हैं. ज्यादातर माएं झुण्ड में खुलेआम अवारागर्दी -मटरगश्ती करती दिखती हैं. न इन्हें दिन की परवाह होती है न रात  की, किसी भी वक़्त ये बीच सडक पर अपने बच्चों की की शिकायतों का जुगाली करतीं मिल जाती हैं. अब ये घर-बार की सब जिम्मेदारियों से मुक्त होती हैं तो बिंदास सड़कों पर चहलकदमी करती रहतीं हैं. अपनी पारी और जिम्मेदारियां इन्होने पूरी कर लिया है. सो शायद घर में भी इनकी कोई जरूरत नहीं रही है, तभी ना सुबह चार बजे हो या रात के बारह ये उसी बेफिक्री में मस्त दिखतीं हैं. आती जाती गाड़ियां इनसे प्रभावित होतीं हैं तो इनकी बला से, अचानक ट्रैफिक  जाम होती है तो होए , इन्हें क्या. किसी की ट्रेन छूट रही हो या प्लेन, कोई बीमार  मरता हो तो मरे. ये अपनी मंथर गति से ही मस्तानी चाल चलेंगी वो भी जिस भी दिशा में मन हो. जब इनकी किटी पार्टी में कोई फंसता है तो कभी कभी घंटों लग जातें हैं,  वैसे  इन्हें हाई वे पर ही विचरण ज्यादा पसंद है. सड़क पर बैठी मातों को बचाने के चक्कर में गाड़ियों की खूब भिडंत होती है, बड़े - छोटे वाहन  किनारों पर पलटे हुए देखे जातें हैं. पर ये माताएं चूँकि निर्वाण प्राप्त कर चूँकि हैं सो ये निर्लिप्त भाव से दिन भर होने वाली इन दुर्घटनाओं की मूक साक्षी बनी रहतीं हैं. आखिर इन्ही बच्चों ने तो उन्हें घर से बे घर किया है. ऐसी बात नहीं कि माता पूर्ण रूपें निरपेक्ष हो गयी है, बहुत सारी माएं जान बूझ तेज वाहनों की चपेट में आ जाती हैं या फिर गाड़ी- ट्रक वालों को बाध्य कर देतीं हैं कि वो उन्हें धक्का मारे या कुचल दे. पूरी देश में जहाँ माँ की शान में दंगे हो जातें हैं, उन्ही माताओं के लावारिश नुचे-कुचले विभत्स्य शव प्रश्न चिन्ह बन राह में यत्र-तत्र पसरे रहतें हैं. बेहद दुखद और अफसोसजनक है ये. हम बड़ी बड़ी कशीदाकारी बातें कर दंभ भरतें हैं, इन माताओं के नाम पर, वो बातें जो सिर्फ खोखली हैं.
  जी, हाँ छत्तीसगढ़ में आप रायपुर, रायगढ़, बिलासपुर, कोरबा, चांपा ......जिधर चले जाएँ झुण्ड की झुण्ड दुबली, कृशकाय, बूढी, मरियल, सूखी गायें आवारा सड़कों पर मिलती हैं. क्या ये गो - रक्षा है ?