सोमवार, 20 अगस्त 2012

यथार्थ - ख़ुशी को भी अकेले आने डर लगता है.


ख़ुशी को भी  अकेले आने डर लगता है.


कहते हैं दुःख कभी अकेले नहीं आती है,
पर मुझे तो लगता है .......
सुख भी कभी अकेले नहीं आती है.
कभी विशुद्ध-निखालिस ख़ुशी देखी है?
मैंने तो नही देखी......
ख़ुशी की बदली छाती तो जरूर है,
पर किनारों पर कालिमा भी ,
साथ देख ही जाती है .
हंसी,ख़ुशी के साथ रंग-बिरंगी .
फ्राक पहने इठलाती है.
पर नाखुशी के छोटे पैबंद ,
मुहं चिदाते रहते हैं.
एक की मनोकामना पूरी हुई,ख़ुशी आई
दूसरा अपनी अधूरी आकांक्षों से,
बिसूरता ही दीखता है.
ख़ुशी कभी खुल कर आओ,
सिर्फ सुख ही साथ लाओ.