मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

मेहँदी रचे हाथ ,चूड़ी भरी कलाइयां,समुद्र का किनारा और शॉर्ट स्कर्ट



  जी हाँ अभी पिछले हफ्ते मैं इसी माहौल में ५-६ दिनों तक रही.  पिछले  हफ्ते मैं अपने पति देव के साथ अंदमान गयी थी। हम एक कंडक्टेड टूर पर थे,जिसमे कुछ लोगो का ग्रुप बना हुआ था। हम जिस ग्रुप में थे उसमे नवविवाहित जोड़े ही अधिकतर थे। शादी का लग्न मुहूर्त बस समाप्त ही हुआ था ,सब ३-४ दिन पुराने दंपत्ति थे। हम जैसे दो चार लोग ही थे जो २५-२६ साल पुराने जोड़े थे। अंदमान के बेहद ख़ूबसूरत समुद्री किनारे इन बच्चों के चहचहाट से और दिलकश हो उठे थे। भारत के अलग अलग प्रांतों से आयीं ये नयी नवेली दुल्हनों कि हथेलियाँ चटक मेहँदी से सुर्ख थी ,कलाइयां लाल चूड़ो से भरी हुईं ,किसी के गले में मंगल सूत्र ,तो किसी कि मांग नारंगी रंग के सिन्दूर से भरीं हुई पर सभी बिलकुल  आधुनिक और छोटे कपड़ों में। एक अलग दिलकश नजारा था। पहले दिन तो कुछ बच्चियां बिलकुल हाई पेंसिल हील में निकली ,पर दो के  उस दिन पैर मुड़ गएँ और मोच आ गयी। अलग  अलग  नए जोड़े ,हर जोड़ा दूसरे से अलग। मैं कनखियों से उन्हें भांप रही थी। ……मज़े  लेती थी।

    बेजोड़ जोड़ा -बिलकुल एक दुसरे के लिए मानों बने हों ,बेशर्म जोड़ा -सबके सामने बेशर्मी से लिपटे हुए ,शर्मीला जोड़ा,समझदार जोड़ा ,लम्बे जोड़े या फिर झगड़ालू जोड़े -जो आपस में झगड़ते रहते। एक जोड़ा था जो पहले दिन दूर बैठा बिना सटे पूरब पश्चिम देखता हुआ -अनजान जोड़ा ,पर पांचवे दिन हाथ में हाथ डाले मुस्कुराते हुए देख रही थी ( यानि पहले दिन" अजनबी कौन हो तुम " से हम बने तुम बने एक दूजे के लिए " का सफ़र तय हो चुका था ). इसी तरह हम अनुमान लगते कि इनका प्रेम विवाह है या अर्रेंज।
   सभी जीवन कि राह में एक नया रंग भरते हुए अपनी वैवाहिक जीवन क़ी शुरुआत कर रहें थे। एक अच्छा अनुभव रहा।
     

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

बदलाव



सविता जी,की चिंता छुपाये नहीं छिप रही थी। हैरान परेशां सुबह से इधर उधर हो रहीं थी ,क्या पहनू कैसे बाल बाँधू या फिर खुले छोड़ दूँ ?जूते पहनूँ या सैंडल। साडी ठीक रहेगा या सलवार कुरता ,उलझन बढ़ती जा रही थी। बार बार बेटी के कमरे में झांक रहीं थी ,वह अभी तक सोयी ही पड़ी थी। सच पूछा  जाये  तो जब से पता चला था कि उन्हें होटल अम्बरविला जाना है ,उनके मन में अशांति का ज्वार  फूटा हुआ था। आठ दिनों से ठीक से नींद नहीं आ रही थी। दो रात से अपने पति को भी रात में करवटें बदलते देख रही थी। देखूं ये क्या कर रहें हैं करते इनके तरफ झाँका ,ये बाल काले कर रहें थे। सविता को  हंसी आ गयी ,अब आप बाल क्यों रंग रहें है ?देखो सफेदी झलक रही थी,सोचा रिस्क क्यूँ लेना। मतलब कश्मकश इधर भी चल रही है। उफ्फ !! पिंकी तुम उठ क्यूँ नहीं रही हो ,मेरी जान निकली  जा रही है डर से.....सविता ने मन में बुदबुदाया।
          पिंकी अपने वक़्त से ही उठी ,सविता ने  अपनी बेचैनी का पूरा हाल सुनाया। डोन्ट वरी मम्मा ……सब ठीक होगा। तुम जैसी हो वैसी ही रहो। माँ के   चेहरे के भाव पड़ते हुए फिर बोली अच्छा ये ब्लू साड़ी पहन लो और जूड़ा बना लो तुम पर फबता है। अपने पापा को भी कुछ टिप्स देती हुई बाथरूम में घुस गयी।

    नियत समय से आधा घंटा पहले वे लोग अम्बरविला पहुँच चुके थे। वो लोग भी  बिलकुल वक़्त पर पहुंचे। पिंकी ने माँ कि हथेली को हल्का सा दबाया और मानों उसे एक आत्मबल का संचार हो गया।कुछ ही क्षणों के बाद  होटल में  सब यानि पिंकी के माता पिता और निलेश के माता पिता छोटी बहन और दादा जी एक टेबल के चारो ओर बैठ ठहाके लगा रहें थे। सविता नज़रों से लोगो के भाव पढ़ने का यत्न कर रही थी। तभी निलेश कि माँ ने पिंकी से कहा तब बेटा तुम्हे हमसब कैसे लगे?सविता का मुहँ खुला रह गया ,कि कहीं लड़केवाले ऐसा पूछ सकते हैं .......

   अभी दो महीने पहले एक वैवाहिक विज्ञापन के जरिये उनलोगो का आपस में संपर्क हुआ था ,आज पहली बार आपस में मिलने से पहले दोनों पक्ष एकदूसरे के बारे अच्छी जानकारी हासिल कर चुके थे। निलेश के माता पिता पिंकी से उसकी पढाई नौकरी ,भविष्य कि प्लानिंग पूछ रहें थे। घर से चलने के वक़्त पिंकी ने वही कुर्ती पहना  था  जिसे पहन पिछले दिनों अपनी सहेली के घर गयी थी यानि बेहद ओपचारिक वेश भूषा। सभी आपस में खुल कर बात कर रहें थे। निलेश हंसमुख स्वाभाव का लग रहा था। वह हँसते हुए अपनी माँ को कहने लगा कि अब तो कोई घबराहट नहीं हैं न माँ ,जानती हैं सविता आंटी यहाँ आने से पहले सब डरे हुए थे कि इतनी पढ़ी - लिखी लड़की है जाने कैसा व्यवहार होगा। …। आपलोग के लिए भी तरह तरह के विचार आ रहें थे। सविता सोचने लगी अरे यही  हाल तो हमारा भी था। …… वातावरण हल्का होते गया ,मन मयूर नाचने लगा।

२५-३० साल पहले  कि सविता को लड़की दिखाने   कि अपनी यंत्रणा याद आ गयी ,शायद जमाना बदल रहा है। …… …