बुधवार, 28 अगस्त 2013

अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है।




अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।


यदि अचानक आपको पता चले की जीवन भर आप जिस से डरते आयें है। …। वो तो खुद मन ही मन आप से भय खाता  है तो कितना हल्का सा सारा जग लगने लगेगा। कितना फुस्स सा लगेगा की जिस के खौफ से रात दिन दिल चिंता ग्रस्त और मन भयभीत रहा हो उसकी तरफ से ऐसा संकेत आये की वोह भी दिल दिल आप से थोडा भय रखता है। मज़ा आ गया। ……

     पर  ये बदलाव ऐसे ही नहीं आया है ,………………. उसके लिए दिल को कितना कड़ा कर अपने स्वाभाव के विपरीत रूखा रूख अपना कर ,"जैसे के साथ तैसा" जैसा निति अपनाना पड़ा। जब तक  …यू कहें उम्र भर उनके आगे झुकते रहें ,डरते रहे, दबते रहें  …। वो झुकाते रहें और दबाते रहें। सही बात है सीधे खड़े पेड़ों पर आरी पहले  चलाई जाती है। दुष्ट प्रवित्ति के लोगो से ज्यादा विनीत हो कर व्यवहार करें तो वे इसे अपनी महत्ता समझने लगते हैं। हमारी अच्छाई को वे हमारी दीनता समझने लगतें हैं और अकड़ -अकड़ कर और धृष्ट होने लगते हैं।ये  कहने की बात है की अच्छाई से हर बुराई  को जीती जा सकती है या प्यार पत्थर को भी मोम बना देती है। …. हर बार ये फार्मूला सही नहीं होता है ,अब मेरा अनुभव कहता है की कभी कभी कुछ इतने खास जड़ लोग होते हैं जो सिर्फ अपनी ही बोली समझते हैं उनके सामने प्यार,संवेदना,समझदारी और विनय की भाषा दम तोड़ देती है। अगला यदि अदब और तमीज से बात कर रहा है तो लोग उसे अपनी क़ाबलियत समझ लेतें हैं। ऐसे ही लोग पत्थर चुनते चुनते हीरा गवां बैठते हैं। ऐसे लोगो से कुछ दिन अपने चोले को त्याग उनकी ही कमीज पहन आइना दिखा देना चाहिए। उन्हें अपनी अच्छाइयों की कमी महसूस करानी चाहिए। ……….
अति परिचय ते होत है ,अरुचि, अनादर भाय। मलयागिरि की भीलनी, चंदन देत जलाय 
 


गुरुवार, 22 अगस्त 2013

स्वप्न

उम्मीद से ज्यादा , वक़्त से पहले मिल जाए तो क्या अच्छा  हो 
सोचे  जो हो,चाहें   जो उससे अच्छा हो जाए तो क्या अच्छा  हो 
तरसने  तड़पने ललचने   से पूर्व निपट जाए तो क्या अच्छा  हो  
मन्नत  के पहले मांग स्वीकृत  हो जाये तो क्या अच्छा  हो। ....