सोमवार, 30 जून 2014

प्रेरणादायक कविताये(harivansh rai bachchan)

प्रेरणादायक कविताये

जब नाव जल में छोड़ दी
तूफ़ान ही में मोड़ दी
दे दी चुनौती सिंधु को
फ़िर धार क्या मझधार क्या ??
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वह प्रदीप जो दिख रहा है
झिलमिल दूर नही है
थक कर बैठ गए क्यों भाई
मंजिल दूर नही है .
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जो बीत गई सो बात गई
माना वह बेहद प्यारा था
जो डूब गया सो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
क्या अनगिन टूटे तारो पर
कब अम्बर शोक मनाता है
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खोता कुछ भी नही यहा पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतर चांदनी
पहने सुबह धुप की धोती .
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यह अरण्य झुरमुट जो काटे, अपनी राह बना ले
कृतदास यह नही किसी का जो चाहे अपना ले
जीवन उनका नही उधिस्थिर जो उससे डरते हैं
ओ उनका जो चरण रोप निर्भय होकर लड़ते हैं .
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सूरज हूँ जिंदगी की रमक छोड़ जाऊंगा
मैं डूब भी गया तो सबक छोड़ जाऊंगा
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कोिशश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है.
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है.
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है.
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो.
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्श का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम.
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
->By Harivansh Rai Bachchan
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सब कहते हैं कि तुम्हे क्या कमी है 
कैसे समझाए कि वक़्त कटता नहीं
अकेलापन अपने आप में एक कमी है 
जिंदगी में और कमी कुछ ख़ास नहीं

पंचतंत्र की ये  कहानी बहुत चर्चित है। इन शार्ट वह इस तरह है -
एक साधू सुबह नदी में अंजुरी से जल अर्पण कर रहा कि तभी एक चुहिया चील के पंजो से छूट उसके हाथ में आ गिरी। साधू सिद्ध थे उन्होंने उसे एक लड़की बना कर बहुत अच्छी लालन पालन किया। बड़ी हुई तो उस गुणवंती लड़की की शादी हेतु वो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ को खोजने लगे। इसी क्रम में सूरज के पास गए जिसने कहा मुझसे ताकतवर बादल है जो मुझे ढक देता है ,बादल ने कहा पहाड़। जब वे बेटी को पहाड़ के ले गएँ तो उसने बोला कि मैं चूहे के समक्ष बेबस हूँ वो मुझमे गढ्ढे कर देता है। अतः निष्कर्ष निकला की चूहा सबसे ताकतवर है। साधू ने लड़की को फिर से चुहिया बना उसका ब्याह चूहे से कर दिया। 

मोरल -यही है आप नियति को नहीं बदल सकतें हैं। 

बुलंदी की उडान पर हो तो... जरा सबर रखो,
परिंदे बताते हैं कि... आसमान में ठिकाने नही होते....


नज़र रखो अपने 'विचार' पर,
क्योंकि वे ''शब्द'' बनते हैँ।
नज़र रखो अपने 'शब्द' पर,
क्योंकि वे ''कार्य'' बनते हैँ।
नज़र रखो अपने 'कार्य' पर,
क्योंकि वे ''स्वभाव'' बनते हैँ।
नज़र रखो अपने 'स्वभाव' पर,
क्योंकि वे ''आदत'' बनते हैँ।
नज़र रखो अपने 'आदत' पर,
क्योंकि वे ''चरित्र'' बनते हैँ।
नज़र रखो अपने 'चरित्र' पर,
क्योंकि उससे ''जीवन आदर्श'' बनते हैँ।

सोमवार, 23 जून 2014

सुख- दुःख चक्र

रोज सूरज निकलता है ,दिन होता है -रात होती है। इंसान का जीवन इसी चक्र में चलता जाता है। रात - दिन , सुबह -शाम ,जीवन -मृत्यु के चक्र के अलावा एक और चक्र होता है सुख -दुःख का। अच्छा भला व्यक्ति का जीवन गुजर रहा होता है ,ढर्रे पर चलती जिंदगी। सुख दुःख एक निश्चित मात्रा में आना जाना करते रहते हैं ,निश्चित वक़्त के लिए कि अचानक संतुलन बिगड़ने लगता है ,किसी एक की आमद दुसरे से अधिक हो जाती है। जब कुछ अधिक ही चाहतों का कत्लेआम होने लगता है ,मन को कुछ अधिक कुचल दिया जाता है नियति द्वारा। हम गलत पर गलत साबित होते जाते हैं ,पीड़ा ,व्यथा और दुर्दशा हावी होने लगती है। ये दुःख की अवस्था बड़ी ही कठिन होती है. सारे निर्णय गलत ,हम गलत। कभी कभी इतनी अन्धकार छा जाती है कि जीवन में ,मानस पर कि जुगनू रूपेण छोटी खुशियाँ अपना एहसास नहीं करा पातीं हैं। मैं गुजरी हूँ दुःख की लम्बी काली स्याह लम्हों से। एक के बाद एक आतीं मुसीबतें संभलने/ सँभालने का मौका नहीं देती है. 
 अपनी गर्व अपनी जिंदगी की पूँजी को बिखरते हुए देखना ,रिश्तों को रंग बदलते महसूस करना। स्वयं को मिटते हुए /गिरते हुए देखना ,जिन्दा नरक होते हैं। दुःख के क्षण कठिन होते हैं पर सबसे बड़े शिक्षक होते हैं। ये जो सीखा जातें हैं वो कोई पुस्तक कोई अध्यापक नहीं पढ़ा सकते हैं। विपत्ति काल में व्यक्ति का अहम पूरी तरह नष्ट हो जाता है ,जितना ज्यादा दुखों के भवंर में फंसता है उतना उसका स्वयं  अहम अहंकार का नाश होता जाता है। ना दिन की होश रहती है ना रात की ,न भूख न प्यास। तपस्वी हो व्यक्ति प्रभु भक्ति में डूब जाता है।   ईश्वर के समक्ष घिघियाते हुए वो अपनी भूलो की क्षमा याचना करता है . दुःख दुर्दशा दुर्दिन व्यक्ति को  निचोड़ लेते हैं। जीवन - सार सार को गहि रहे ,थोथा देय उड़ाय। 
  कभी तो ईश्वर को व्यक्ति पर दया आती है ,कभी तो ग्रहों के चाल बदलते हैं। कभी कभी हताशा की घनी बदली के बीच से चमकता हुआ सूरज भी दिख पड़ता है। एक दो काम कुछ बन जाते हैं तो महसूस होता कि शायद किस्मत कभी दरवाजा भी खोल देगी। दुखों के कीचड में स्नान कर व्यक्ति कमल की ही मानिंद निर्मल हो पल्लवित होता है।  ज्यूँ तप कर तपस्वी तेजस्वी हो जाता है ,घनघोर विपदा के पश्चात व्यक्ति वैसा ही धुला- पुछा  स्वच्छ निर्मल हो विकसित होता है। किस्मत के मारे को कंगले को जो भी थोड़ी सी कृपा मिलती है वह नतमस्तक हो शुक्रिया  करता  है। 
   ग्रह अनुकूल हो जाएँ  ,ईश्वर की कृपा हो जाये तो क्या क्या प्राप्त हो जाता है लोगो को। जिस परमपद की कल्पना न की हो ,जिस स्वास्थ की आशा ना की हो ,जिस की कभी स्वप्न में इक्षा की हो ,,,,सब सब पूरे होने लगते हैं। पत्थर छू ले सोना बन जाये। व्यक्ति पेड़ के नीचे सोया हुआ रहता है ,ऊपर पहले आम की कामना तक ना की हुई हो ,वो पका आम उसी वक़्त उसके मूँह में टपक जाता है जब वह शायद जमाहीं लेने को खोलता है। कहने का आशय है कि आश्चर्य जनक रूप से  काम यूं बनने लगते हैं कि व्यक्ति सोचता है कि ये तो उसकी क़ाबलियत है। और अहंकार दबे पांव प्रवेश करने को आतुर हो जाता है। .......
    सुख- दुःख चक्र यूं जीवन को आगे ठेलता जाता है . 

गुरुवार, 19 जून 2014

सतलड़ा हार

सतलड़ा हार

एक छोटा सा खाता -कमाता परिवार था। दोनों बच्चे अभी छोटे ही थे कि पिता की मृत्यु हो गयी। माँ की आमदनी बहुत कमथी। अचानक आई विपदा ने तीनो को हिला कर रख दिया। बच्चे अचानक सयाने हो गए। माँ सब भांप रही थी। एक दिन बेटी ने कहा कि माँ मैं सोचती हूँ कि मैं डांस क्लास जाना बंद कर दूँ कुछ पैसे ही बचेंगे। इसी तरह बेटे ने कहा कि मैं महंगे वाले स्कूल से नाम कटवा कर सरकारी स्कूल में नाम लिखवा लेता हूँ। दोनों अपनी तरफ से गृहस्थी चलाने में मदद करने की कोशिश कर रहें थे। बच्चे हर बात पर पैसों और गरीबी की बात करने लगे ,माँ महसूस कर रही थी की उनमे हीनता की भावना बढ़ने लगी थी।
एक दिन माँ की छुट्टी थी ,वह अपने बच्चों को ले कर बैंक गयी जहां उसका एक लॉकर था। उसने बच्चो अपना लॉकर दिखाया जिसमे कुछ छोटे मोटे गहने थे और था एक बड़ा सा सोने का सात लड़ियों वाला चमचमाता हार ,जिसमे बेशकीमती नगीने जड़े थे। बच्चो के मुहं खुले रह गए ,माँ ने बताया कि ये हार उसे शादी के वक़्त उनकी दादी ने दिया था।
लौटते वक़्त बच्चों की चेहरे की दमक कुछ और ही बयाँ कर रही थी। माँ मैं सोचता हूँ कि मैं इसी स्कूल में अपनी पढ़ाई जारी रखूं ,बेटे ने कहा और माँ मैं भी डांस क्लास नहीं छोड़ती हूँ ,बेटी ने कहा। हमारे पास इतनी कीमती हार है,जरूरत पड़ेगी तो हम हार बेच देंगे,दोनों ने कहा। इस रहयोद्घाटन के बाद मुश्किलें खत्म तो नहीं हुई पर आत्मविश्वास जरूर आ गया। उच्च शिक्षा के वक़्त या घर बनवाते वक़्त लगा अब हार बेचनी ही पड़ेगी पर अगली बड़ी जरूरत के लिए उसे बचा लिया गया और जैसे तैसे काम बनता गया।
माँ अब बुड्ढी हो चली थी ,बच्चे अच्छे से कमाने लगे थे। सतलड़ा हार बैंक लॉकर में ही पड़ा रहा। एक दिन माँ सतलड़ा हार ले कर घर आई और दोनों बच्चो को बुला कर कहा कि इसे पहचानते हो तो दोनों ने समवेत कहा कि ये तो हमारा बेशकीमती धरोहर है जिसके विश्वास पर हमने दुनिया की हर मुश्किल को पार किया। माँ ने राज खोला कि ये हार नकली है ,जब मैं तुम दोनों को पिता के जाने बाद हीनता के भंवर में जाते देखा तो तो तुमलोगो के आत्म विश्वास को बचाने हेतु खरीदा।
बच्चे आवाक हो सुन रहें थे ,बहुत कुछ गुजरा यादों से ,फिर उन्होंने उस सतलड़े हार को उठाया और फिर से लॉकर में ही रख दिया कि हम जानते हैं कि ये हार नकली है पर विश्वास तो इसने सच्चे दिए थे। हमारे बच्चों के काम आएगी ये पूँजी।
(३०-३५ साल पहले रीडर्स डाइजेस्ट में कुछ इस भाव की कहानी पढ़ी थी,मूल भाव इतनी प्रेरक थी कि भूली नहीं कभी )

मंगलवार, 17 जून 2014

निश्चय




निश्चय 

खेत चली जाउंगी ,खलिहान चली जाउंगी ,
तुम कहो तो अम्मा कचरा भी बीन लाऊंगी। 
      पर स्कूल जरूर जाउंगी पढाई पूरी करुँगी,
       अनपढ़ का ठप्पा माथे से अब मिटाउंगी। 
फीस का पैसा मैं खुद ही जुटाऊंगी ,
रोटी नहीं दोगी तो पानी पी कर चली जाउंगी।
       खुद भी पढूंगी और छोटी को पढ़ाउंगी,
       पर स्कूल जरूर जाउंगी पढाई पूरी करुँगी।

मंगलवार, 10 जून 2014

किधर जा रहे हो भैया

गर्मी की उमस भरी शाम थी ,छत पर टहल रहा था कि तभी रमेश की पुकार सुनाई दी। दुमंजिले से ही झाँका तो हड़बड़ाते हुए उसने कहा,चल जल्दी चिड़िया फँसी है। मन मयूर खिल उठा ,जल्दी से मैं सीढ़ियों से उतरने लगा तभी उषा की आवाज आई "किधर जा रहे हो भैया ?"आता हूँ ,कह मैं रमेश के साथ चल पड़ा। मनोज अपनी गर्ल फ्रेंड जिसके साथ वह दो महीनो से घूम रहा था को अपने हॉस्टल के कमरे में बड़ी मुश्किल से बहला फुसला कर लाया था। हॉस्टल पहुंचा तो देखा मनोज ,सुरेश ,बाबू अपना काम कर मूंछ ऐठ रहें थे ,चल फटा फट लग जा कह मुझे मनोज के कमरे में धकेल दिया। लड़की परकटी पंछी की तरह तड़प रही थी और हाथ जोड़ विनती कर रही थी ,हूँ ह ! मैं क्यों पीछे रहूं ,तभी आवाज आई "किधर जा रहे हो भैया ?" ये आवाज शायद साथ ही आ गयी थी  . पता नहीं क्यों मूड ही ख़राब हो गया और मैं चुप चाप घर लौट आया और चादर से मुुंह ढँक सो गया। 
  सुबह किसी के झिंझोड़ने से नींद खुली ,देखा पुलिस आई हुई है। पर ररर ! मैंने तो कुछ नहीं किया ,मैं हकलाने लगा। सामने उषा खड़ी थी ,पता नहीं उसने थूका कि नहीं पर मुझे छींटे तो पड़े थे। 
 लड़की ने हिम्मत दिखाई थी ,पहले वाली लडकियां तो चुपचाप घर चली जाती थी। जेल में हम पांचो की जिंदगी बद से बदतर थी। मेरे घर से कोई जमानत करने भी नहीं आया था। महीनो बाद अदालत में मैं लड़की के सामने उसी तरह हाथ जोड़ विनती कर रहा था जैसे उस दिन वह कर रही थी ,"मैंने कुछ नहीं किया ,मैंने कुछ नहीं किया" कि मैं रट लगाये हुए था।  जज और लड़की दोनों ने ही मुझसे पुछा कि उस दिन मैंने क्यों नहीं कुछ किया ?क्यों नहीं मैंने उसे बचाया ?
कितना भी मुुंह धो रहा हूँ ,उषा के थूक चेहरे से हटते ही नहीं हैं। लड़की का रेप तो शायद एक दिन हुआ पर हमारा हर पल हो रहा है।