सोमवार, 25 अगस्त 2014

स्त्री पुरुष समानता

हम स्त्री पुरुष समानता की बात करतें हैं। पुरुष इस मुगालते में होतें हैं कि वह स्त्री से श्रेष्ठ हैं और स्त्री को पढ़ा- लिखा हौसले इत्यादि दे अपने बराबर लाना है। जबकि सच्चाई ये है की स्त्री विकास की दौर में पुरुष से आगे है। सृजन की क्षमता रखने वाली औरत सभी मानवीय गुणों जैसे प्यार ,करुणा ,संवेदना ,सहनशीलता ,दया आदि से पूर्ण होती है। विकास के क्रम में हम मनुष्य जानवरों से इंसान बने। एक स्त्री में तो अपने तथाकथित साथी पुरुष की तुलना में मानवीय गुण अधिक होते हैं। पर विकास के इस क्रम में पुरुष इन सभी मानवीय गुणों से पूर्ण अलंकृत नहीं हो पाया है। पाश्विक प्रवृत्तियाँ इनमे अभी भी मौजूद होती हैं। किन्ही में सुसुप्त अवस्था में तो किन्ही में जागृत ,वहीँ कहीं कहीं किसी पुरुष में ये पशु प्रवृत्तियाँ परिस्तिथी अनुसार जागृत हो जाती हैं। भुगतना पड़ता है इनकी साथ रहने वाली स्त्री जाति को। स्त्रियां कोमलांगी होतीं हैं क्यों कि उनमे पुरूषों जैसे हाथी या गैंडे का बल शेष नहीं रहा। पुरुष कभी कुत्ते की तरह दुम हिलाता पीछे चलता है तो कभी लोमड़ी सी चालाकी दिखाता है। काक चेष्टा रखते हुए पुरुष कभी कभी एकांत में चीते सी छलांग लगा दबोच लेता है ,बाघ सी भावना बलवित हो औरत को तार तार कर देता है। कभी घर में पालतू बिल्ली सा पड़ा पुरुष अचानक आस्तीन का सांप हो डस लेता है। 
अतः आग्रह है कि जब समानता की बात चले तो ध्यान रखा जाये कि अभी किसको विकास करना है। ज्यादातर ऐसे ही पुरुष हैं जो पूर्ण मानव के रूप में विकसित हो चुके हैं दिक्कत उन अर्धविकसित पुरुष रूपेण मानव से है जिनकी पाश्विक प्रवृत्तियाँ अभी शेष हैं और वही सारे पुरुष जाति को कलंकित भी करतें हैं।





3 टिप्‍पणियां:

  1. कितना सही---विकास पुरुषों का ही होना चाहिए ,बल तो ईश्वरीय देन है,बादबाकी तो अपने वर्चस्व को स्थापित करने हेतु दुर्गुण भरे हैं---बहुत अच्छा लिखें

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