गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

बदलाव



सविता जी,की चिंता छुपाये नहीं छिप रही थी। हैरान परेशां सुबह से इधर उधर हो रहीं थी ,क्या पहनू कैसे बाल बाँधू या फिर खुले छोड़ दूँ ?जूते पहनूँ या सैंडल। साडी ठीक रहेगा या सलवार कुरता ,उलझन बढ़ती जा रही थी। बार बार बेटी के कमरे में झांक रहीं थी ,वह अभी तक सोयी ही पड़ी थी। सच पूछा  जाये  तो जब से पता चला था कि उन्हें होटल अम्बरविला जाना है ,उनके मन में अशांति का ज्वार  फूटा हुआ था। आठ दिनों से ठीक से नींद नहीं आ रही थी। दो रात से अपने पति को भी रात में करवटें बदलते देख रही थी। देखूं ये क्या कर रहें हैं करते इनके तरफ झाँका ,ये बाल काले कर रहें थे। सविता को  हंसी आ गयी ,अब आप बाल क्यों रंग रहें है ?देखो सफेदी झलक रही थी,सोचा रिस्क क्यूँ लेना। मतलब कश्मकश इधर भी चल रही है। उफ्फ !! पिंकी तुम उठ क्यूँ नहीं रही हो ,मेरी जान निकली  जा रही है डर से.....सविता ने मन में बुदबुदाया।
          पिंकी अपने वक़्त से ही उठी ,सविता ने  अपनी बेचैनी का पूरा हाल सुनाया। डोन्ट वरी मम्मा ……सब ठीक होगा। तुम जैसी हो वैसी ही रहो। माँ के   चेहरे के भाव पड़ते हुए फिर बोली अच्छा ये ब्लू साड़ी पहन लो और जूड़ा बना लो तुम पर फबता है। अपने पापा को भी कुछ टिप्स देती हुई बाथरूम में घुस गयी।

    नियत समय से आधा घंटा पहले वे लोग अम्बरविला पहुँच चुके थे। वो लोग भी  बिलकुल वक़्त पर पहुंचे। पिंकी ने माँ कि हथेली को हल्का सा दबाया और मानों उसे एक आत्मबल का संचार हो गया।कुछ ही क्षणों के बाद  होटल में  सब यानि पिंकी के माता पिता और निलेश के माता पिता छोटी बहन और दादा जी एक टेबल के चारो ओर बैठ ठहाके लगा रहें थे। सविता नज़रों से लोगो के भाव पढ़ने का यत्न कर रही थी। तभी निलेश कि माँ ने पिंकी से कहा तब बेटा तुम्हे हमसब कैसे लगे?सविता का मुहँ खुला रह गया ,कि कहीं लड़केवाले ऐसा पूछ सकते हैं .......

   अभी दो महीने पहले एक वैवाहिक विज्ञापन के जरिये उनलोगो का आपस में संपर्क हुआ था ,आज पहली बार आपस में मिलने से पहले दोनों पक्ष एकदूसरे के बारे अच्छी जानकारी हासिल कर चुके थे। निलेश के माता पिता पिंकी से उसकी पढाई नौकरी ,भविष्य कि प्लानिंग पूछ रहें थे। घर से चलने के वक़्त पिंकी ने वही कुर्ती पहना  था  जिसे पहन पिछले दिनों अपनी सहेली के घर गयी थी यानि बेहद ओपचारिक वेश भूषा। सभी आपस में खुल कर बात कर रहें थे। निलेश हंसमुख स्वाभाव का लग रहा था। वह हँसते हुए अपनी माँ को कहने लगा कि अब तो कोई घबराहट नहीं हैं न माँ ,जानती हैं सविता आंटी यहाँ आने से पहले सब डरे हुए थे कि इतनी पढ़ी - लिखी लड़की है जाने कैसा व्यवहार होगा। …। आपलोग के लिए भी तरह तरह के विचार आ रहें थे। सविता सोचने लगी अरे यही  हाल तो हमारा भी था। …… वातावरण हल्का होते गया ,मन मयूर नाचने लगा।

२५-३० साल पहले  कि सविता को लड़की दिखाने   कि अपनी यंत्रणा याद आ गयी ,शायद जमाना बदल रहा है। …… …


 









16 टिप्‍पणियां:

  1. hindibloggerscaupala.blogspot.com/ के शुक्रवारीय अंक १३/१२/१३ मैं आपकी रचना को शामिल किया जा रहा हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे .धन्यवाद

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  2. ज़माना बदल गया है रीटा जी :) बहुत सुन्दर कहानी

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    1. सकारात्मक बदलाव को बढ़ावा देनी ही चाहिए। …Thanks Meena ji.

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  3. wow, kya khubsurat....waqt badla.jamane ke dastur badal gaye hain....ladka-ladki me antar kaha.....

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    1. Mrs Sah ,सकारात्मक बदलाव को बढ़ावा देनी ही चाहिए। …सखी आप तो दो बेटों कि माँ हैं आपसे सकारात्मकता कि अपेक्षा रहेगी उनकी शादी के वक़्त तभी कपोल कल्पना साकार होगी।

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  4. बहुत खूब ,उम्दा पोस्ट के लिए बधाई |

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