शनिवार, 19 मई 2012

.फल की परम्परा


.फल की परम्परा


सविता जी लगभग २०-२५ वर्षो में मेरे पडोस में रहतीं है.कुछ दिनों से उन्हें बहुत परेशान देख रही थी,मुझसे रहा नही जा रहा था.उनका  भाव-भंगिमा उनके दुखो को बयाँ कर रही थी.अभी ८ दिन पहले ही तो बेटे के पास से घूम कर आयीं थी.मैंने थोडा सा कुरेदा तो उनके आसूं निकल गये.क्या बताउं इतने शौक से बेटे की शादी की थी.मेरी सास ने जो मुझे नही किया था मैंने सब किया.मैंने अपने सारे जेवर बहू को पहना दिए थे,आप तो जानती ही हैं मेरी सास ने मुझे एक भी जेवर नही  नही दिया  था.सोचा था इतना  देना लेना करुँगी   तो बहू सर-आँखों पर रखगेगी..पर इज्जत देना तो दूर,वो तो मुझसे सीधी मुह बात भी नही करती है.मैंने सुना वो मेरे बेटे को बोल रही थी की मेरी सारी गर्मी की छुट्टियाँ आपकी मम्मी जी सेवा में बीत रही है.फिर मैं रुक कर क्या करती,अगली ट्रेन से लौट आई.बहुत ही बुरी बहू मिल गयी है,ठीक ही है भगवान ने उसे भी २ बेटे दिए हैं,एक दिन उसे जरूर फल मिलेगा.

      मुझे अचानक १५-२० साल पहले की याद हो आई,जब सविता जी की सास आयीं हुई थी और इन्होने उनका जीना दूभर  कर रखा था.उनकी गरीबी पर हँसती,गहना-जेवर ले कर ताने मारती.बेचारी विधवा सास,ताने बेइज्जती सहती रहती,पर इन्होने उन्हें वापस गाँव भेज कर ही दम लिया था.आज भी ८०-८५ साल की इनकी सास बड़ी मुश्किल से अपनी जीवन की गाडी गाँव में खीच रहीं  हैं. ये बड़ी हिकारत से उन्हें यहीं से लंबी उम्र के लिए उन्हें कोसती रहती है.

  आज इनकी बातो को सुन कर लगा ,समय का पहिया घूम चूका है, पता नही कौन फल भोग रहा है.....या भुगतेगा....

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