गुरुवार, 20 मार्च 2014

"एक पन्ना डायरी का"

२०  मई १९८३

आज मन बहुत ज्यादा ही उदास है। पिछले ३  दिनों में कितना कुछ बदल गया है। मैं अपनी क्लास में सर्वदा प्रथम या द्वितीय आती रहीं हूँ। शायद इसीलिए मुझे घर में पढ़ने भी  दिया गया अभी तक। दादी  का बस चला होता तो मैट्रिक के बाद मैं भी दीदी की तरह अपने ससुराल में होती। कितनी मुश्किल से मैंने विज्ञानं के लिए पिता जी को राजी किया,रात दिन एक कर पढाई  करती रही। घर में लड़कियों वाले सारे धर्म निभा कर ही मैं कॉलेज जा पाती।एक नया सपना पलने लगा कि डॉक्टर बन जाऊँ। उस दिशा में मैं कमर कस मेहनत करने लगी ,अपनी पुस्तकों को मैंने अपना साथी बना रात  दिन लगी रही अपनी मंजिल पाने को।पर १७ मई के अखबार में जब पीएमटी के रिजल्ट निकला तो मेरा नाम नदारद था।मैं पागलों की तरह दौड़ती हुई दूसरों के रिजल्ट पूछने लगी ,पर ज्यादातर वहीँ लोग सफल हुए हैं जिन्होंने इसकी विशेष कोचिंग किया था।  मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि मैं असफल हो चुकी हूँ। मेरा डॉक्टर बनने का सपना अधूरा ही रह जायेगा। मेरी सहेली रूपा का चयन हो गया है ,मैंने उसे कितना मदद किया था तैयारी  के दौरान।लग रहा है जमीन फट जाये और मैं उसमें समा जाऊं। अपना असफल चेहरा छुपा कर मैं किधर जाऊं ?दादी तो बस ऐसे देख रहीं हैं मानो उन्हें तो पता ही था कि मैं असफल रहूंगी। पिता  जी भी ने कोई खास सहानुभूति नहीं जताया बल्कि कहा कि देखो जरा रूपा को अब वह डॉक्टर बन जायेगी। माँ तुम क्यूँ चली गयी मुझे छोड़ कर ,आज तुम्हारी कितनी याद आ रही है। तुम होती तो आज तुम्हारी गोदी में मैं अपना चेहरा छुपा लेती। तुम होती तो शायद अपने आँचल से मेरे आंसुओं को पोंछ डालती।तीन दिनों से मैंने कुछ  खाया नहीं है। मैं असफल हो गयी मैं असफल हो गयी ………
 पिछले चार घंटो से मैं इस कुँए के मुंडेर पर बैठी सोच रहीं हूँ कि क्या मेरे जीवन का अब कोई मोल बचा है ?मैं कितनी नालायक हूँ ,मुर्ख और बेवकूफ हूँ। मेरी सारी  मेहनत पानी में चली गयी। अब तो दादी और पिता जी मेरी शादी करवा कर ही छोड़ेंगे। मेरा मर जाना ही बेहतर है। कैसे मरुँ ?फांसी  लगा लूँ कि कुँए में कूद जाऊं ?पर कहीं हड्डी पसली टूटने के बाद बच गयी तो ,तब तो जीना और दुश्वार हो जायेगा। क्या करूँ ?

२१ मई १९८४

आज का दिन मेरे जीवन का सबसे अच्छा दिन है। आज पीएमटी का रिजल्ट निकला और मैं सफल रही ,सिर्फ सफल ही नहीं रही बल्कि राज्य में मेरा १० वां स्थान भी रहा। अब मैं राज्य के टॉप मेडिकल कॉलेज में पढ़ कर डॉक्टर बनूँगी।
एक साल से मैंने डायरी नहीं लिखा था। पिछले साल कुँए के मुंडेर से लौटने के बाद मैंने इसे हाथ भी नहीं लगाया था। डायरी लिखने का मेरे पास वक़्त ही कहाँ था ?मैं जो दोबारा कमर कस तैयारियों में जुट गयी थी। सच ! यदि पिछले साल मैं कुछ ऐसा वैसा कर बैठती तो ये दिन देखने को नहीं मिलती। दादी सुबह से बावरी हो मंदिरों में माथा टेक रहीं हैं और पिता जी तो मिठाइयां बांटे जा रहें है। मेरी मेहनत आख़िरकार रंग लायी।








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