गुरुवार, 20 सितंबर 2012

एक उद्गार


सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नही विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं

ये कविता मुझे बचपन से बहुत अच्छी लगती है.पर अभी जब मैं कई तरह की विपत्तियों से घिरी हुईं हूँ ,तो ये पंक्कितियां मुहं चिदाती सी प्रतीत हो रहीं हैं.किसी मंगल कार्य में लगा व्यक्ति अ-मंगल से यूँ ही बचता रहता है.उसपर यदि विपत्तियों  के काले बादल अचानक से छा  जाये .....सच तो ये है की कायर हो या शूरमा विपत्ति जब बिना पदचाप के हमला करती है तो सभी दहल जातें हैं. जब हमला चौ -  तरफा   हो,तो धीरज की कौन खबर रखता है,होश बची रह जाये तो बहुत है. विघ्न को भला कोई क्यूँ कर गले लगयेगा,वह तो खुद ही गले पद जाती है.कांटे कभी रह बनाने नही देते है अपने से,आपके पावँ को छलनी-छलनी हो कर वेदना सह कर ही शायद राह  मिले.........

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