लड़की की बस अभी विदाई हुई ही थी,लड़की की माँ दहाड़े मार,रो रो कर आसमान-पाताल एक करने लगी.वहाँ उपस्थित सभी की आखें नम होने लगी.रोते हुए वे उच्च स्वर मे क्रंदन करते हुए बेटी के जाने का गम का भी बखान कर रहीं थी.सुबह उठते अब मुझे और इनको चाय का प्याला कौन पकड़ाएगा ...... मेरी पूजा की थाली कौन सजायेगा,कौन अपने बाबू जी को कपड़े इस्तरी कर देगा......ऊं ऊँ.....कौन मेरी नाश्ते की प्लेट सामने रखेगा....अब कैसे मेरी गृहस्थी चलेगी रे !मुन्निया तेरे बिना????कौन छोटे भाई को स्कूल के लिए तैयार करेगा,अररे कौन खोलेगा रे मुन्निया दिन भर घर का दरवाजा.छाती पीटते हुए माँ बेटी के बियोग मे कह रहीं थी कैसे बनेगी अब रसोई ,कौन गमलों को पानी देगा,साफ सफाई घर कि कैसे होगी ....... .हीरा सी बेटी मेरी चली गयी अब रात मे कौन हमारे पैर दबाएगा.....…
स्वर शनै शनै बढ़ रहा था.......मैं सोचने को मजबूर हो गयी कि यदि हजार दो हजार मे एक महरी रख दी जाये तो शायद बेटी की विदाई का गम नहीं सालेगा।
beti kee bedayi ka sundar citarn...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अमर भारती जी.
हटाएंBeti ki nahi kaam ki chinta lagi thi
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapne Shanti Purohit ji.
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