मंगलवार, 5 अगस्त 2014

अस्तित्व,माँ तो बस माँ ही होती है ,no man' s land,किश्तों में मौत

वो थी पर मानों उसका अस्तित्व ही नहीं था। बेटा दफ्तर जाता ,बेटी कॉलेज जाती और पति अपने दुकान जाता । उनका महत्व था ,वो थकते ,आराम करते मन बहलाव भी करते। चूँकि वो कामकाजी नहीं तो उसको थकान कैसी ?आराम की क्या जरूरत ?एक दिन सुबह सभी को देरी हो गयी क्यों कि चाय मिली ही नहीं। उसे लकवा मार दिया था और वो बिस्तर पर हो गयी। उसदिन कोई कहीं जा नहीं पाया क्यों कि कितना कुछ करने को था। उसका तो कोई अस्तित्व ही नहीं था फिर उसके बीमार होने से सब की गाडी पटरी से क्यों उतर गयी।


माँ तो बस माँ ही होती है 
   लोकगीतों वाली कहानी है तार्किक नहीं बस एहसास है। 

बेटे को उदास देख माँ परेशान थी ,बात ही बातों में उगलवा लिया कि उसकी प्रेमिका ने उससे कहा है कि वो उससे तभी शादी करेगी जब वह अपनी माँ का दिल ला कर देगा। माँ तो बस माँ होती है ,उसने सीना चीर अपना लहूलुहान दिल बेटे को दे दिया। बेटे की मुश्किल हल हो गयी थी वह जल्दी जल्दी दिल ले कर दौड़ा ,तभी एक पत्थर से ठोकर खा गया ,माँ का  दिल टूट कर बिखर गया। हर टुकड़े से आवाज आई ,बेटा तुम्हे चोट तो ना आई ?


अस्तित्व
(pratiyogita ke liye)
ये चित्र देख आप चौंक रहें होंगे ,अनुमान लगा रहें होंगे कि ये देश का कौन सा भाग है। पर दुनिया के नक़्शे पर कुछ ऐसे भी जगह होते हैं जो किसी भी देश के अख्तियार में नहीं होतें हैं - लावारिस प्रदेश (No Man's Land) . हमारे पूर्वज सदियों से इस इलाके में रहते आएं हैं ,आज भी हम खानाबदोश हैं। दो संघर्षशील देशो की सीमाओं के बीच अव्यस्थित हमारा कोई माई -बाप नहीं है। त्रासदी ये है कि हमपर अधिकार दोनों देश करना चाहते हैं। हमारी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों ने तो दोनों देशो के बीच विवादों को विराम देने हेतु इस क्षेत्र को "मध्यवर्ती अवस्था" घोषित कर दिया है। पर शान्ति कहाँ ?आये दिन दोनों एक दूसरे पर गोले बारूद बरसाते रहते हैं। ये हमारे घर की तस्वीर है ,जिसे एक पत्रकार के माध्यम से मैं दुनिया को दिखाना चाहता हूँ। हम तो दोनों ही देशो से कुछ नहीं मांग रहें ,बस हमे बक्श दिया जाये। दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोई वाली स्तिथि है। पता चला पिछले दिनों दोनों देशो के सरदार हाथ मिलाते हुए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर खूब ड्रामा किया। पर बारूद से ध्वस्त छतें,काली पड़ी दीवारे और ये हमारे खंडहर घर गवाह हैं इनकी घृणा की। हम तो अपनी जिंदगी में मस्त रहते हैं कि नफरत का एक गोला किसी भी तरफ से आ हमे नेस्तनाबूद कर देता है। किसी तीसरी देश का ये पत्रकार इस चित्र की जरिये दुनिया को बताना चाहता है कि भले ही दुनिया के नक़्शे में हमारा अस्तित्व नहीं है पर हम भी जीती जागती मानव शरीर धारी हैं और हमारा भी कुछ अस्तित्व है।
(पूर्णतया काल्पनिक)







किश्तों में मौत 
पहली बार वह तब मरी जब पांच संतानों में एक की उल्टियाँ रूक ही नहीं रही थी। उस जवान बेटे को जब डॉक्टर ने कैंसर बताया ,मौत सिर्फ बेटे की नहीं उसकी भी पास आने लगी। दुनिया में सब से भारी अपनी संतान की अर्थी होती है ,उस बोझ तले दम ऐसा घुटता है कि जिंदगी सांस लेना भूल जाती है। फिर वह तो एक बूढी होती माँ थी जिसके घुटने यूं ही जवाब दे चुके थे और आँखे धुंधली हो चली थी। बेटे की मौत के बाद ईश्वर क्या उसकी जीवन लेता उसने खुद ही शरीर छोड़ दिया था। बाकी बच्चे आत्मा विहीन शरीर को डॉक्टर के हवाले कर लिपट चिपट उससे ना जाने की दुहाई दे रहें थे। कल बेटी की जन्मतिथि पर उसे जन्म देने वाली अपनी पुण्यतिथि लिखा गयी। हर दिन किश्तों पर मरती माँ की कल आखिरी किश्त थी। 






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