शुक्रवार, 26 जून 2015

हठ योगिनी

किसी साधना रत सन्यासी की ही भांति वह अपनी लक्ष्य हेतु अनवरत तपस्यारत रहती .सन्यासी तो सघन वन या हिमालय पर जातें होंगे ,पर वह नन्ही जान इस संसार में सांसारिक सुखों के बीच रहते हुए साधना रत रहती .कोशिश करती सारा आसमान पाने की पर मिलता एक टुकड़ा .उस एक स्वप्न को प्राप्त करने हेतु उसने अपनी नींद ही, त्याग दी थी .जानती थी जगती आँखों का स्वप्न ,पलकों के मूंदने से ना प्राप्त होगा . एक हठयोगिनी की ही तरह अपनी इन्द्रियों को काबू कर मेहनत करती रहती .पर परिणाम आता तो सारी मेहनत पानी बना इधर-उधर बहता दीखता .रात भर रोती,अपने वजूद की किरचे बीनती .अगले दिन से फिर से अपनी जूनून की सवारी कर लेती.

  आख़िरकार सफलता मिलनी ही थी ,सो मिली .मन हल्का हो उड़ चला .पथरीली राहों की यात्रा समाप्त हुई ,अब तो बस आसमान अपनी मुठ्ठी में .बिन पंखो के सफलता के रथ पर सवार उड़ चली दुनिया मुठ्ठी में भरने . 


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