हमारे आस-पास इतना कुछ घटित होता है,कुछ बातें रोजमर्रा की होती हैं जिनपर कोई ध्यान नही जाता है.पर कभी कभी कुछ ऐसा होता है, जो मन को झकझोर देतीं हैं .दिल मजबूर कर देता है कलम उठाने को.कभी दिल में भावनाओं का ज्वार इतने हिलोरे लेने लगता है कि उन्हें शब्दों का जामा पहनाना आवश्यक हो जाता है.
गुरुवार, 31 मई 2012
पंखा लगे नगीना
टप- टप टपके पसीना गर्मी का महीना पंखा लागे नगीना गर्मी का महीना. बिजली कभी रहे न गर्मी का महीना. झुलसा घर और अंगना
गर्मी का महीना. बादल कहीं दिखे न गर्मी का महीना. टप-टप टपके पसीना पंखा लागे नगीना गर्मी का महीना.
.......बहुत खूब कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ... वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया .....!!
"पंखा लागे नगीना",बचपन में सुनी हुई किसी गीत की ये पंक्ति आज बिना बिजली की इस दोपहरी में बहुत याद आ रही है.
जवाब देंहटाएंसुंदर ....
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं संजय भास्कर हार्दिक स्वागत करता हूँ.
जवाब देंहटाएं.......बहुत खूब
जवाब देंहटाएंकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया .....!!
धन्यवाद संजय जी .
जवाब देंहटाएं