शनिवार, 19 मई 2012

नजरिया --

                              नजरिया --

      जिस तरफ तुम हो वहाँ से वही दीखता है,जिस तरफ मैं  हूँ वहाँ से यही दीखता है.
         .... गलत तुम भी नही , गलत मैं भी नहीं.

   बात नजरिये की है.एक ही बात का तुम कुछ और मतलब निकलते हो,मैं कुछ और.
         .... गलत तुम भी , नही गलत मैं भी नहीं.
    विचारों का न मिलना सबसे बड़ी विडम्बना है
     तुम कहते हो गिलास आधी खाली है,मैं कहती हूँ आधी तो भरी है.
      ....सही तुम भी हो,सही मैं भी हूँ.

      तुम जहाँ खड़े  हो उधर से विरानियाँ ही दिखती है,पर जहाँ मैं हूँ वहाँ से वहीँ मुझे रंगीनियाँ  भी  दिख रहीं है
   ..कैसे कहूँ  गलत कौन है.
     उसमे तुम्हे कमियाँ ही कमियां दिखती हैं पर मुझे तो कुछ सम्भावनाएं भी झाकती   दिख रहीं हैं
 .....  कैसे कहूँ कौन सही है

     तुम्हें वहाँ सिर्फ राख और मलबा ही नजर आ रहा है,
   पर मुझे शायद राख में दबी चिंगारी और मलबे से हिलती जिंदगियां भी महसूस हो रही हैं.
 ... . .बात नजरिये की है
 अपनी नकरात्मक चश्मे को बदल डालो.सकारात्मक शीशे में  कुछ और ही तुम को नजर आएगा.
  ......शायद अबकी बार  मैं ही सही हूँ.

4 टिप्‍पणियां:

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  2. बिलकुल ठीक लिखा है आपने बात नजरिये की है जो सभी का अपनी तरफ से अलग अलग हो सकता है ...बढ़िया

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