शनिवार, 8 मार्च 2014

चित्र  कथा प्रतियोगिता



कोयला खदान 


छत्तीसगढ़ की धरती बड़ी ही समृद्ध है। एक तरफ तो घने जंगलों की सघनता तो दूसरी तरफ गर्भ में काला हीरा कोयले की प्रचुरता। पारो अपने पति और कुछ अन्य लोगो के साथ बांसवाड़ा ,राजस्थान से कोरबा  काम करने कुछ ३-४ साल पहले आयी थी। पहले वह भी काम करती थी पर एक बच्चा हो जाने के बाद वह मजदूरी छोड़ घर सँभालने लगी। अक्सर मन नहीं लगने पर वह बच्चे को गोदी में ले कर खदान में आ जाती और एक तरफ ढेरी पर बैठ काम करती औरतों से बतियाती। खदान में कोयले की निकासी के चलते काली धूल उड़ती रहती ,बड़े बड़े डोजर डम्फर चलते तो नीला आसमान काला हो जाता। धरती के अत्यधिक दोहन से पर्यावरण की सारी व्य़ाख्या यहाँ दम तोड़े रहती है। आज पारो पूरी सज धज के साथ आयी थी ,गले में सोने की पानी चढ़ी माला ,पैरो में पायल ,नयी लाल चूड़ियाँ ,गहरे बैगनी लहगा और होठों पर लाली भी थी। सोचा था पति काम कर ख़तम कर ले तो कोरबा सिनेमा देखने जाउंगी। कोई पेड़ -छावं तो था नहीं गमछी से ही छाया कर रही थी तभी खदान में दूर कहीं ब्लास्टिंग कर कोयला तोडा गया और धूल की आंधी ऐसी चली कि लगा पारो का काजल सर्वस्य फैल गया। उसने मोबाइल से अपने पति को रिंग किया , तभी उसने जो देखा वह खदान की आम घटना थी, उसका पति एक विशालकाय डम्फर के भीमकाय चक्कों तले पिस कर पापड़ हो चुका था। धूल इतनी घनेरी थी कि पास आ गयी डम्फर उसे दिखाई नहीं दिया और ब्लास्टिंग के शोर में सुनाई भी नहीं दिया। बस एक हाथ बाहर था और  मुठ्ठी में मोबाइल बजे जा रहा था 



प्रतियोगिता के लिए कहानी 
नोंक -झोँक 
उफ़ ! कब बंद होगी इसकी बकवास ?अभी सूरज का नामो निशान नहीं हैं पर इसकी चहचहाट शुरू हो गयी। दिन भर फिर उड़ते भटकते ही कट जाता है। जरा देर तक सोने भी नहीं देती है। अरे जाओ न अकेले ,एक दिन मैं सोता ही रहूँगा तो क्या हो जायेगा। कितनी शोर मचा रही है,पता नहीं कैसे शादी के पहले यही आवाज मुझे रस घोलती सी प्रतीत होती थी। पडोसी जोड़ा अभी तक सोया पड़ा है एक ये है कि बस ....... आलसी चिड़ा झूठी मूठी आँखे मूंदे सोच रहा था।मेरी तो किस्मत ही फूट गयी। 
चिड़िया बोले जा रही थी ,अरे धूप की गर्मी बढ़ने से पहले चलो हम दाना चुग आये,चिलचिलाती धूप में उड़ान मुश्किल होगी। बरसात आने वाली है ,मैं अंडे देने वाली हूँ। हमें कुछ भविष्य के लिए भी बचाना होगा। जाने कैसे पहले मेरे आगे पीछे फुर्ती से हुआ करता था?अब तो पडोसी घोसलें वाले की तरह दिन चढ़े पड़ा रहता है। महारानी जी कल मुझ से मांग कर ले गयी थीं दाना।मैं गला हकलान किये हुई हूँ और इनके कानों पर जूँ नहीं रेंग रही है। उफ़ मेरी तो किस्मत ही फूट गयी।




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