अनंत व्योम अर्श से आगंतुक
जलधि ,
किनारों से मिलने की हसरत में
शताब्दियों से आते हैं बारम्बार
दौड़ते भागते उछलते बार बार
मिलते हैं ,
प्यार यहीं छोड़ लहरें लौट जातीं हैं।
लहरों का किनारों से नाता है गहरा
सहस्त्र हस्तों से थाम प्यार सारा
अम्बु दल उलीच देती है
सुख सौभाग्य ढेर सारा।
असीम वरुणालय
करुणा आपार
अथक निहारे मन नयन।
जो कहना है कह दो
जो मांगना हो मांगो
देता है जलधि सबको
मनचाहा मन भाता
दोनों बाजुओं को फैलाकर
भर दो जीवन रत्नाकर
bahut sundar sagar ki tarah hi lahrati gahan rachna ..
जवाब देंहटाएंसच ! सागर तट पर कुछ यही ख्याल आया था मन में। धन्यवाद् सखी।
जवाब देंहटाएंVery nice mumma!!
जवाब देंहटाएंVery nice mumma!!
जवाब देंहटाएंVery nice mumma!!
जवाब देंहटाएंwah....adbhut,umda..gahri baten...
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