मंगलवार, 19 अगस्त 2014

अधिकार और कर्तव्य

एक कहानी
भीड़ भाड़ वाले सड़क के बीचो बीच एक बड़ा सा पत्थर रखा हुआ था। रातो रात ये पत्थर देख सभी हैरान थे। पैदल चलने वाले उसके ऊपर से पार होने लगे ,गाडी वाले उससे बचते हुए किनारे से। सब समवेत राजा को गाली दे रहें थें कि नागरिकों की सुविधा का उन्हें कोई ख्याल नहीं है। परेशानी सब को हो रही थी पर सब सोचते ये मेरा काम थोड़े ही है। दो तीन दिनों में सब बीच सड़क में रखे पत्थर के आदि हो चले थे। फिर एक दिन एक व्यक्ति पत्थर को ठेलने की कोशिश करते दिखा ,राहगीर उसे देख मजाक उड़ाने लगे। पर वह अकेले लगा रहा ,फिर किसी भद्र पुरुष की पुरुषत्व जागी और और वह भी मदद करने को बढ़ा। एक से भले दो और दो से भले तीन ,फिर कुछ लोगो ने मिल कर उसे रास्ते से हटा दिया। दरसल इस कथा में पत्थर राजा ने ही रखवाई थी लोगो में सहभागिता की भावना जागृत करने हेतु और ये शिक्षा देने की अकेले राजा ही हर चीज का जिम्मेदार नहीं है।
कुछ ऐसी ही परिस्तिथि आज हमारे देश में भी है। हम सब एक मसीहा का इन्तेजार करते रहते हैं जो हमारे फर्ज भी पूरा करेगा और हर हाल में प्रशासन को ही जिम्मेदार समझते हैं।
कुछ छोटे मोटे फर्ज तो हम आम लोग भी कर ही सकतें हैं ?

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