शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

आत्म-समर्पण पर पुलिस को बयान,नारी सशक्तिकरण


मेरा नाम माधुरी है ,मैं झारखण्ड के लोहरदगा की रहने वाली हूँ। हमारे यहाँ विकास की रौशनी अभी तक बहुत धीमी है. हमारे यहां रूसी क्रांति से प्रेरित नक्सलवादी विचारधारा के बहुत सारे युवक हैं। नक्सलवाद के समर्थक मानते हैं कि प्रजातंत्र के विफल होने के कारण नक्सली आंदोलन का जन्म हुआ और मजबूर होकर लोगों ने हथियार उठाए। कोई छह साल पहले एक रात मुझे घर से इनलोगो ने उठा लिया , मेरा भाई भी इस संगठन से जुड़ा रहा था,जिसकी पुलिस मुठभेड़ में जान गयी। मुझे और दल की कुछ  और लड़कियों को   सशस्त्र लड़ाई और गुरिल्ला तकनीकियों की कठिन ट्रेनिंग दी गयी। उनका व्यवहार हमारे प्रति सौहार्द पूर्ण ही था। हमने पुलिस मुठभेड़ में हिस्सा लिया ,मैंने दो पुलिस वाले को कौशल पूर्वक ढेर किया। उसदिन पहली बार हमने अपने नक्सली कमांडर अक्षय को देखा ,जिस शोषण के खिलाफ मैंने हथियार उठाया था वह वहां भी सुरसा की मूँह बाए था। अक्षय की शानो शौकत रहन सहन दिल्ली के नेताओं को मात दे रहें थे। मदांध कमांडर और ग्रुप के अन्य नेताओं ने हमारे आबरू को तार तार कर दिया ,गहन सघन वन में चीत्कार लौट के हमारे ही कानों में गूँज रहें थे। 
 अगली भोर हम कुछ महिलाएं अपने हथियारों के साथ चुपके से निकल पड़े उस ओर जिधर से जिंदगी की करतल ध्वनित हो रही थी। ओह ! आज करमा है,हम आदिवासियों का बड़ा त्यौहार। लडकियां लाल पाड़ की सफ़ेद साड़ी पहन ,माथे में करम डार की टहनी खोंसे झूमर पाड़ रहीं थी। हड़िया की खुशबु से पूरा वातावरण तर था। पांव ठिठक गएँ और मन पुराने दिनों में अटक। अचानक मोहभंग हो गया कि हम किस राह पर चल दिए हैं ,सच कहती हूँ बाबू मरे भाई की सौं मैं सीधी आपके पास थाने चली आई हूँ। हथियारों सहित आत्मसमर्पण करने।  



नारी सशक्तिकरण 
उस आदिवासी बहुल इलाके में अपने प्रवास के दौरान हर काम में महिलाओं की अधिक भागीदारी ने मुझे वास्तविक नारी सशक्तिकरण पर एक आलेख तैयार करने पर मजबूर कर दिया। हर कार्यस्थल में महिलायें ही महिलाएं ,वाह! यहाँ पुरुष जरूर घरेलू कार्यों में बढ़-चढ़ हिस्सेदार होंगे। यही देखने शाम को मैं उनकी बस्ती में चला गया। वहाँ "नारी बेचारीकरण" का जबरदस्त दृश्य ने मुझे आलेख का शीर्षक बदलने पर मजबूर कर दिया।


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