मंगलवार, 22 जुलाई 2014

मनोविज्ञान,भूत ,चढ़ावा

मनोविज्ञान 
कल से सब भूत - प्रेत से डरा रहे हैं ,एक सच्ची घटना ये भी 
वो लोग केकड़ा बड़ी पसंद से खाते थे। बड़े भाई को दूसरे शहर जाना था ,परन्तु जाने के पहले कुछ देर छोटे भाई के साथ केकड़े की खोज में चला गया। दोनों नदी के पास गड्ढा खोद केकड़ा खोज रहे थे ,तभी बड़े भाई को गड्ढे में काट खाया। उसने जल्दी से हाथ बाहर निकाला और छोटे को बोला देखो यहाँ लगता है की है ,तुम देखो मैं चला और वो बस से चला गया। पहुँच के फोन भी कर दी। दो ही दिनों के बाद छोटे भाई को अपने पास आया देख उसे आश्चर्य हुआ ,अरे मैं तो दो दिन पहले ही आया था मिल कर। छोटे ने कहा कि तुम ने जिस गड्ढे में मुझे केकड़ा खोजने बोला वह दरसल सांप का बिल था। तुम्हे कुछ काटा भी था अंदर, सो देखने चला आया कि तुम कैसे हो। 
बड़ा भाई जो तब तक बिलकुल ठीक था यह सुनते ही पीला पड़ने लगा। हाथ -पांव काँपने लगे और कुछ ही देर में सांप के काटने सारे लक्षण उभर आये और शाम होते होते चल बसा।





भूत 
एक बार हम सब भाई बहन नानी के घर उनके गांव गए थे। पहले नानी - दादी के आँचल में कहानियों की पोटली छुपी होती थी। गांव में शाम से ही बिजली कट गयी थी। रात को खाना खाने के बाद कमरे में लालटेन की रौशनी में हम सब नानी को घेर उनकी पोटली खुलने की इन्तेजार में थे। नानी लोटे में दूध का घूँट लेने लगी और एक के बाद एक नायाब किस्सा निकलने लगा। जादुई- छड़ी,राजा-रानी ,राक्षस,भूत -प्रेत और उड़ते घोड़े। ...... धीरे धीरे नींद सबको आगोश में लेने लगी ,परियों ने अभी पंख फैला उड़ना शुरू ही किया था कि मेरी भी आँखे झपकने लगी। अचानक ठन ठन की आवाज से नींद खुली। कोई चमकने वाली चीज पूरे कमरे में इधर से उधर लुढ़क रही थी ,लालटेन की लौ बिलकुल मध्यम पड़ गयी थी। मोनू ने आँखे मलते हुए कहा,ये तो लोटा है लगता है इसमें कुँए वाला भूत घुस गया है। हम सब चीखे मार एक दुसरे से लिपट गए।भूत का प्रकोप पता नहीं गहन रात्रि में ही क्यों होता है ? लोटे वाला भूत कभी ऊपर कभी नीचे हो रहा था। उसने लालटेन को भी टक्कर मार उलट दिया,अब तो कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था सिर्फ आवाजें दहशत किये हुई थी। नानी शायद छत पर सोने चली गयीं थी। फिर आवाजे कमरे के बाहर से आने लगी ,लोटे वाले भूत ने दालान में चीजे उलटनी शुरू कर दी थीं। घड़े की फूटने की आवाज ,फिर बर्तन धनधनाने की आवाजे। हमसब डर के मारे अब घिघिया रहे थे। जाने कब अँधेरे में नींद भी आ गयी। 
सूरज की पहली किरण के संग आँख खुल गयी ,कमरे में बहुत तबाही हुई थी। शोर बंद था यानी भूत जा चुका था ,दालान की तरफ नजर गयी तो भूत भी दिख ही गया। लोटे में बिल्ली का सर फंसा हुआ था और रात भर की उछाल कूद के बाद निढाल पड़ी थी।

 चढ़ावा
कल मुझे अपनी पहली सैलरी मिली थी। जैसे ही फोन पर मैसज आया कि अकाउंट में तनखाह आ गयी मैंने तुरंत माँ को फोन किया। माँ सहित घर में सभी बड़े प्रसन्न हुए। आशीर्वाद के साथ माँ ने कहा कि अपनी पहली कमाई का एक हिस्सा पहले मंदिर में भगवान को चढ़ा दो। फिर जो चाहे करना। आज छुट्टी थी माँ ने सुबह ही फोन से उठा दिया कि मंदिर जाओ। मैंने एटीएम से पैसा निकला और पास ही एक मंदिर में चली गयी। भगवान को प्रणाम किया और दान पेटिका में डालने हेतु रुपैया पर्स से निकलने चली ही थी कि हृष्ट-पुष्ट ,गोरे चिट्टे पण्डे पर निगाह चली गयी। भगवान के समक्ष घी के बड़े बड़े दिए जल रहें थे। मोटा पुजारी चढ़ावे के फल फूल अलग कर रहा था ,जो पैसे /नोट मिल रहें थे उन्हें कमर में खोंसे जा रहा था। पता नहीं किस भाव में मैं ग्यारह रूपये चढ़ा कर  बाहर आ गयी। 
 ३० दिनों से रोज अनाथ बच्चो के एक स्कूल से हो कर गुजरती थी,कदम अनायास ही उधर चल पड़े। रास्तें में कुछ बण्डल कापी और कलम खरीद लिया। फिर मन किया मिठाई और फल भी ले लिया। 

  बाद में माँ ने रिपोर्ट लिया कर लिया पूजा ?चढ़ा दिया चढ़ावा ?मैंने कहा हाँ माँ बड़े ही अच्छे मंदिर में गयी थी ,बड़ी संतुष्टि हुई।    



भूत -२ 
आज ऑफिस से मुझे निकलने में बहुत देर हो गयी थी। झमाझम बारिश और घनी अँधेरी रात। धीरे धीरे कार चलाते मैं चल रही थी ,तेज बारिश के समक्ष बिलकुल धुंधली सी सड़क दिख रही थी कि अचानक एक छोटी सी बच्ची कार के सामने आ गयी ,ब्रेक लगाते लगते भी उसे धक्का लग ही गयी। मैं नीचे उतरी पास जा कर देखा पूरे खून से लथपथ एक ६-७ साल की बच्ची पड़ी हुई है ,चेहरा खून से भींगा हुआ। मैं घबरा गयी,घर पास ही था जल्दी से घर में घुस दरवाजा खटखटाने लगी,माँ ने खोला। मुझे कपडे बदलने बोल माँ चाय बनाने चली गयी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया खोला तो देखती हूँ वही जख्मी लड़की थी ,आँखे तरेर उसने कहा,"मुझे सड़क पर ही छोड़ आई ?" पता नहीं क्यों मैं डर के मारे गश खा गयी। 
 होश आया तो बिस्तर पर थी ,माँ घबराई सी मुझे देख रही थी। सुबह कार निकालने लगी तो गेट के पास वही जख्मी लड़की फिर दिखी ,उसीतरह खून से लथपथ। कार छोड़ मैं घर में वापस भागी और माँ को बताया। माँ को समझते देर ना लगी कि उस रात मेरी गाडी से जो बच्ची मरी थी वही भूत बन मुझे दिख रही है। माँ ने घर में काम करने वाले मुलाजिमों से बात किया ,बाई ने एक तांत्रिक का नाम सुझाया। 
 तांत्रिक हमे घर के पिछवाड़े में बुलाता ,कुछ धूप -धूआँ करता तो भूत फिर सामने आ जाती ,माँ का विश्वास बढ़ते जा रहा था और मेरा डर घटते। हज़ारो रुपये उसने ऐंठ लिए। 
 एक दिन अलसुबह मेरी नींद खुल गयी तो लॉन में टहलने चली गयी। अचानक वही बच्ची साफ सुथरी, सर्वेन्ट्स टॉयलेट की तरफ जाती दिखी। मैंने दौड़ कर उसे पकड़ा तब भेद खुला कि ये बाई और माली की मिली भगत थी जो हम माँ -बेटी को अकेले रहते देख ठगने का प्लान बनाया था। 



अजीब सी रात थी ,मुझे घर जाने में देर हो गयी थी। पानी मूसलाधार बरसे जा रहा था और मैं अकेली चली जा रही थी। हवा से फोल्डिंग छाता बार बार उलट रहा था। घर अब आ ही गयी कि तभी मैंने उसे देखा ,सड़क किनारे छोटी सी छतरी नुमा प्लास्टिक की एक रेहड़ी थी ,८-१० किताबे लिए वो भयानक चेहरे वाला बैठा था। मुझे देखते जोर से बोला क्या आप भूतों पर विश्वास करतें हैं ?इन्हे लीजिये -पढ़िए आपको विश्वास हो जायेगा। मुझे तो वो खुद ही भूत लग रहा था ,भूत से भूतिया किताब लूँ पूरे शरीर में एक सिहरन सी हो गयी। ना लिया तो पता नहीं क्या होगा सोच मैंने पुछा कितने का है ,सिर्फ ५००/ . मैंने बिना हीलहुज्जत के दाम दिए ,तभी अपनी बड़ी सी ऊँगली आगे कर बोला अंतिम पेज भूल कर भी पहले मत पढ़ना।
  मैंने किताब लिया और तेजी से दौड़ पड़ी ,कहीं चिपट न जाए भूत। घर जा कर कुछ देर बाद भूतिया एहसास कम हो गया तो पर्स से किताब निकाली। कैसी घटिया प्रिंटिंग और कलेवर है। उसकी चेतावनी याद आई अंतिम पेज अंत में पढ़ने वाली। सबसे पहले अंतिम पृष्ठ देखा ,एक छोटा सा स्टीकर था ,उखाड़ा लिखा था ५०/ मात्र।  



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