गुरुवार, 24 जुलाई 2014

सच्चा मित्र

आज थोड़ा मन उदास था ,बस यूं हीं। एक मित्र की कमी खल रही थी । इधर उधर घर में घूमती हुई उस ओर नज़र चली गयी जहां बहुत सारे लोग बैठे हुए थे ,सारे जाने पहचाने प्रिय मेरे अपने। तभी शिवानी ने हाथ बढ़ाया और कहा आओ कृष्णकली और सुरंगमा तुम्हारा इन्तेजार कर रहीं थीं। बगल में देसी शेक्सपिअर प्रेमचंद बैठे मुस्कुरा रहें थें। नमक के दरोगा और निर्मला को नमस्ते करते ही कृष्णा सोबती जी जिंदगीनामा बाँचती मिली। पद्मभूषण भीष्म साहनी की तमस की उपस्तिथि ने मुझे विचलित कर दिया कि एक और पद्मभूषण कमलेश्वर जी अपनी फिल्मो छोटी सी बात ,रंग बिरंगी ,आंधी इत्यादि से मन बहलाने लगे। कब दिन गुजर गया कब शाम ढल गयी। यशपाल ने मेरी तेरी उसकी बात ऐसी सुनाई कि रात गुजर गयी। सूर्य की अंतिम किरण से पहली किरण तक सुरेन्द्र वर्मा जी के नाटको ने उलझाये रखा।
कल फिर मिलने का वादा कर मैं देवकीनन्दन खत्री ,रेनू , अमृता प्रीतम ,श्री लाल शुक्ल ,हरिवंश राय और कई हिन्दीकारों से मैंने प्रफुल्लित मन से विदा लिया। सच है पुस्तकों से बढ़ कर कोई मित्र नहीं।

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